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________________ 100.5.15] महाकइपुष्फवंतविरयर महापुराणु [ 379 तेण वि सो ते' मारिउ विसहरु मुउ करि मुउ सकरुल्लु धणुद्धरु। तेत्यु 'समीहिवि मासाहारउ तहिं अवसरि आयउ कोट्ठारउ । लुद्धउ णियतणु लोहें रंजइ चावसिंथणाऊ' किर भुंजइ। तुट्टणिबंधणि मुहरुह मोडिइ तालु विहिण्णु सरासणकोडिइ । मुउ जंबुङ अइतिट्लइ भग्गउ जिह तिहीं सो परलोयहु भग्गउ। म मरु म मरु रद्दसुहं अणुहुजहि भणइ तरुणु तक्कर पडिवज्जहि। सुलहई पेच्छिवि विविहई रयणई गउ पंधिउ ढंकिवि णियणयणई। जिणवरवयणु जीउ णउ भावइ संसरंतु विविहाबइ पावइ। कोहें लोहें पोहें मुज्झड़ .. अट्रपयारें कम्में बज्झइ। कहइ थेणु एक्केण सियालें। मासखंडु 'छंडिवि तिहालें। तणु घल्लिय उप्परि परिहच्छहुतीरिणिससिलुच्छलियहु मच्छहु। आमिसु 'गहियउं पक्खिणिणाहें सो कडिवि णिउ सलिलपवाहें। मुउ गोमाउ मच्छु जलि अच्छिउ ता लपेक्खु वरें णिच्छिउ। वणिवरु पथि को वि सुहं सुत्तर रयणकरंडउ तह तहिं हित्तउ। वणि तुम्हारिसेहिं अण्णाणहिं सो कुसीलु' कउ हिंसियपाणहिं । 15 उस भील ने भी उस साँप को मार डाला। इस प्रकार हाथी भी मर गया और धनुर्धारी भील भी मारा गया। उसी अवसर पर एक सियार आया। वह लोभी अपने शरीर को लोभ से रंजित करता है और प्रत्यंचा की ताँत को खाना प्रारम्भ करता है। बन्धन टूट जाने से दाँतों द्वारा मोड़ी गयी धनुष की प्रत्यंचा से उसका तालू नष्ट हो गया। सियार मारा गया। इस प्रकार अतितृष्णा से जैसे वह नष्ट हुआ, उसी प्रकार परलोक को जीव नष्ट करता है। इसलिए तुम मरो मत, मरो मत। तुम रतिसुख का अनुभव करो।" तब युवा जम्बू तस्कर को मना करता हुआ कहता है-"एक पापिष्ठ अपने सुलभ रत्नों को देखकर, अपनी आँखें बन्द करके सो जाता है, इसी प्रकार इस जीव को जिनवर के वचन सुनकर अच्छे नहीं लगते, वह संसार में घूमता हुआ अनेक प्रकार की आपत्तियाँ उठाता है; वह क्रोध, लोभ और मोह से मुग्ध होता है और आठ प्रकार के कर्मों से बँधता है।" इस पर चोर कहता है-"तृष्णा से व्यागुल एक सियार ने मांस-खण्ड छोड़कर, नदी के जल में उछलती हुई चंचल मछली पर अपना शरीर गिरा दिया। गीध ने मांसखण्ड खा लिया, सियार जल के प्रवाह में बहकर मर गया, मछली जल में रह गयी।" वह चोर कुमार की भर्त्सना करता है। तब कुमार कहता है-“कोई सेठ पथ में सोया हुआ था। उसके रत्नों के पिटारे का चोरों ने अपहरण कर लिया। वन में तुम जैसे अज्ञानी, प्राणों की हिंसा करनेवालों ने उसे निर्धन बना दिया। (5) 1. AP तहिं । 2. AP सीहिय 1. A लद्धउ णियमणि लोहें: ' णियमणु लोहें। 4. A चायसित्षणाओ । चावसिय ता किर जा भुजङ्ग । 5. AP सो तिट । 6. AP विधि। 7. A) गहिज। १. A पछि। 9. A तकालें खयरें णिमच्छिउ। 10. A तहिं तहो। 11.A कुसील कर।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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