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93.13.13]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
घत्ता - तावेत्तहि तेण कंचणणिम्मियगोउरि । मरुभूएं राउ परिपुच्छिउ पोयणपुरि ॥12॥ ( 13 )
सो' भाइ णिसुणहि देवदेव खलमहिलहि कारणि णिग्विणेण भायरु गरुयारउ पिउसमाणु तं गंपि खमावमि करमि खंति ता चवइ णाहु भो सच्छभाव' किं पिसुणयणेण खमाचिएण इय वारिज्जंतु वि अणकहंतु ' ससहोयरु दिउ तव करंतु तुहुं खमहि खमहि बंधव भणंंतु हउ मत्थइ बिउलसिलायलेण पाविज्जइ" लच्छि अलच्छि जेण
रायाहिरा कयमणुयसेव । मई हविहीणें दुज्जणेण । णीसारिउ गउ वणु भग्गमाणु' । खतिइ चंडाल वि देव होंति । किं भणिउं बप्प परं गलियगाव । किं किर विसेण 'गुडभाविएण । गउ सो" तं काणणु गुणगणमहंतु । पंचग्गिताव दूसह सहंतु । पायें " पायहं उप्पर पड़ंतु । गउ जीउ ण को मारिउ खलेण 1 दइवें णिज्जइ " णिरु तेत्थु तेण ।
घता - उवयइरि मुवि भापब्भारविणासहु ।
जाणंतु वि जाइ रवि अत्थवणपएसहु " || 13 ||
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पत्ता - तभी यहाँ, स्वर्णनिर्मित गोपुरवाले पोदनपुर नगर में मरुभूति ने राजा से पूछा ।
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वह कहता है - "हे देवदेव ! मनुष्यों की सेवा करनेवाले राजाधिराज सुनिए। दुष्ट महिला के कारण, स्नेहहीन मुझ दुर्जन और निर्दय ने पिता के समान अपने बड़े भाई को निकलवा दिया। अपमानित होकर वह बन चला गया। मैं उसके पास जाकर क्षमा माँगूँगा । क्षमा से चाण्डाल भी देव होते हैं।" तब राजा कहता है- "हे स्वच्छभाव और गलितगर्व ! तुम क्या कहते हो ? दुष्ट आदमी से क्षमा माँगने से क्या ? गुड़ से मिले हुए विष से क्या ?" इस प्रकार मना करने पर भी, बिना कहे हुए ही गुणगण से महान् वह उस जंगल में गया। उसने अपने भाई को दुःसह पंचाग्नि तप करते हुए देखा। "हे भाई ! तुम मुझे क्षमा करो, क्षमा करो" यह कहते हुए, और पैरों पर पड़ते हुए उसे पापी ने एक बड़े शिलातल से सिर में आहत कर दिया। जीव चला गया। दुष्ट के द्वारा कौन नहीं मारा जाता ? जिस होनहार से लक्ष्मी और अलक्ष्मी पाई जाती हैं, मनुष्य दैव से उसके द्वारा ले जाया जाता है।
घत्ता - सूर्य उदयगिरि को छोड़कर प्रकाशसमूह का नाश करनेवाले अस्तप्रदेश को जानते हुए भी वहाँ जाता
है ।
( 13 ) 1 A ता. 2 AP हूिणें 9. A विग्गमाणु। 4 A चत्तभाव 5AP किं तें पिसुषेण खमाविएण 6. AP गुल' 2 P अणुकहंतु । 8 A तं सो गुणमतुः सतं काणणु गुणमहंतु । 3. A खमहि मज्नु बंधव भणंतु। 10. A भायें। 11. AP add after this the following three lines : लोलाइ महिर्यालि महिरावलित. पुणे पुणु पहणइ सो कुद्धचित्तु । दय णत्थि अजहणाहं तावसाहं, सकसायहं जडकंतायसाहं । बंधु वि वहाँते पार्थधबुद्धि कह होइ ताहं परलोयसुद्धि । 12. P reads or as h and has a. 19. A गरु णिज्जइ । निरु णिज्जइ । 14. P अत्यइरिपएसहो ।