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________________ 70.4.91 महाका-पुष्फयंत-विरायड महापुराणु जोयइ पुत्तलियाणयणएहिं णं हसइ फुरतहि रयणएहिं । परिवित्थारिवि कित्तीमुहाई दावइ पारावयरवसुहाई। घत्ता-जहिं चंदसाल चंदंसुहय चंदकतिजलु मेल्लइ ।। कामिणिपयपहज असोयतरु उववणि वियसइ फुल्लइ ।।3।। सा पुरि परिपालिय तेण ताव सयगीउ खगाहिज पंचवीस णिइलिवि वइरि भूभंगभीस दसपंचसहासई बच्छराह सरितह पाणि मेहलांच्छ। अंकरिंग चडिउ चंडसुमालि आहासिउ दइयह फलपयासि गय वरिसह वीससहास' जाव । थिउ विदवंतु णाणामहीस । पण्णासगीउ मुउ जिइवि वीस । संठिउ पुलस्थि राइयधराहं । सा पेच्छ घरि पइसति लच्छि। सिविणतरंति परिगलियकालि"। गरदेव' देव थिउ गब्भवासि । ण बहुरूविणिवसियरणमंत। आवासु व णयरसंपयाहं । णिवरूवे आणंदु व पयाहं के नेत्रों से जैसे देखती है और मानो चमकते हुए रत्नों के द्वारा हँसती है, अपने कीति रूपी मुखों का विकास कर जो समुद्र और धरती को दिखाती है। धत्ता-जहाँ पर चन्द्रप्याला (छत) चन्द्रकिरणों से आहत होकर चन्द्र कान्त मणियों का जल छोड़ती है, तथा कामिनी के चरणों से आहत अशोक वृक्ष उपवन में विकसित होकर फूल उठता है। उस नगरी का पालन करते हुए उसे जब बीस हजार पच्चीस वर्ष बीत गये तब शतग्रीव बिद्याधर अनेक राजाओं का दलन करता हुआ स्थित हुआ । उसके बाद भ्र भंग से भयंकर शत्रु का नाश कर पंचाशत ग्रीव पन्द्रह हजार वर्ष जीवित रहकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। तब धरती को अलंकृत करने वाले इतने वर्षों में फिर पुलस्त्य गद्दी पर बैठा। उसकी प्रियतमा मेघलक्ष्मी थी। वह घर में हंसती हुई लक्ष्मी के समान दिखाई देती थी। उसकी गोद के अग्रभाग में स्वप्न में सूर्य चढ़ गया। समय बीतने पर उसने पति से पूछा । इस बीच फल को प्रकाशित करने वाले गर्भ में देव राजा के रूप में स्थित हो गया जो स्वजनों को सुख देता हुआ उत्पन्न हुआ। मानो अनेक सुन्दरियों के लिए वशीकरण मंत्र ही उत्पन्न हुआ हो । अपने रूप से प्रजा के लिए आनन्द के समान तथा विद्याधरों की संपदा के निवास के समान वह था। 8.A 'रइसुहाई. 'रयसुहाई। 9.Aपयड्यउ । (4) 1.AP तीससहास 1 2. AP ओहामियरू जाइ लच्छि (A जायलच्छि)। 3. पढिगलिय । 4. APणरदेउ देठ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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