SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [45 70. 2.8] महाकद-पृष्फयंत-विरदयउ महापुराण ए अट्ठम मइंग णिसुणिउं पुराणि संठिय सलायपुरिसाहिठाणि । जगतावणु रावणु रणि हणेवि महि भुंजिहिति खर्गे जिणेवि । बलएव जणदण सुय ण भात दससंदणु पुच्छइ विहियसंति । घत्ता–महं कहहि पुरोह लद्धविजउ भुवणत्तयविक्खायउ ।। दहगीउ वसासापत्तजसु केण सुपुण्णे जायउ ।।1।। जसु आसंकइ जमु वरुणु पवणु तहु एयह भणु सिचिंधु कवणु। ता कहइ विप्पु महुरइ गिराइ सुणि धादइसंडहु पुश्विल्लभाइ । आरामगामसंदोहसोहि खरदंडसंडमंडियसरोहि। रंभंतगोउलावासरम्मि जवणालसालिजवछत्तसोम्मि। गोवाल बालकीलाणिवासि तहि सारसमुच्चइ णाम देसि । णायउरि अस्थि णरदेउ राउ बंदिवि अणंत गुरु बीयराउ । संतइहि थवेप्पिणु भोयदेउ जइ जायउ मेल्लिवि बंधहेउ । विज्जाहरु पेच्छिवि चवलबेउ णयलि आवंतु विचित्तकेउ । स्वयं सामने आकर खड़ी होती है, वह राम को छोड़कर एक पग भी इ.र-उधर नहीं जायेगी। यह मैंने आठवें पुराण में सुना है कि राम शलाकापुरुषों की परम्परा में स्थित हैं। वह संसार को सताने वाले रावण को युद्ध में मारकर तथा धरती को तलवार से जीतकर उसका भोग करेंगे। ये पुत्र साक्षात् बलदेव और जनार्दन हैं। इसमें भ्रांति मत कीजिये । तब मन में शांति धारण करते हुए दशरथ ने पूछा पत्ता-हे पुरोहित, मुझे यह बताइये कि दसों दिशाओं में यश प्राप्त करने वाला रावण किस पुण्य से विजयों को प्राप्त करता हुआ तीनों लोकों में विख्यात हुआ है। (2) यम, वरुण और पवन जिससे डरते हैं उसका ऐसा अपना कौन-सा चिह्न है ? यह सुनकर ब्राह्मण मधुर वाणी में कहता है--सुनिये मैं बताता हूँ। धातकीखंड के पूर्व भाग में सारसमुच्चय नाम का देश है, जो उद्यानों और ग्रामों के समूह से शोभित है । जो कमल समूह से मंडित सरोवरों से युक्त है। जो रंभाते हुए गोकुल के समूह से सुन्दर है, और जो जवनाल (?) धान तथा जौ के क्षेत्रों से सुन्दर है, जिसमें ग्वालों के बालकों की क्रीड़ा हो रही है, उस देश की नागपूर नगरी में नरदेव नाम का राजा है । वह परमवीतराग, अनन्तमुनि की वन्दना कर तथा कुल परम्परा में अपने पूत्र भोजदेव को स्थापित कर, पाप के बंध के सब कारणों का परित्याग कर मुनि हो गया। इतने में उसने आकाश में आते हुए विचित्र पताका वाले चपलवेग नाम के विद्याधर को देखा। उसने अपने मन में यह निदान (इच्छा) वांधा कि मुझे अगले जन्म में इस विद्याधर का सुन्दर भोग 6. AP णिमुणिचं मई। 7. P भुजिहंति। 8, A omits सद्धविजः। 9. A दहगीव; P दसगोउ। 10. P सपुणे। (2) 1. P कमणु । 2. AP कीलणणिवासि ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy