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________________ 69.32. 19 महाकइ-पुष्फर्यत-विरहयज्ञ महापुराण [39 32 ता खद्धकदेण सह तबसिविदेण' । गउ णारओ सेउ तं णयरु साकेउ । तेणुत्त दियसीह पश्वय दुरासीह । वणयरई मारंतु अट्ठियइं चूरंतु । चम्माई छिदंतु वम्माई भिदंतु। इसिदिठ्ठ सुपसत्यु जइ वेउ परमत्थु । तइ खग्गु किं णेय जज्जाहि कुविवेय । जइ पोरिसेओ वि णउ होइ भणु तो वि। वण्णझुणी गयणि किं फुरइ गरबयणि । अक्खरई कहिं बिंदु कहिं अत्यु कहि छंदु । कामनापगलेग विणु पुरिसवत्तण । कहि हेउ कहिं वेउ कहिं पाणु कहिं णेउ । कहि गयणि अरविंदु णीरूवि कहिं सद्द । वेयम्मि कहिं हिंस दिय गिलियपरमंस । हिसाइ कहिं धम्मु जड मुयहि तुहं छम्मु । कत्तार दायार जण्णस्स यार। जहिं होंति होयार' सुरणारिभत्तार। तो सूणगारा वि मीणावहारा वि । पसुखद्धबद्धा' वि। (32) तब जिन्होंने कंद का भोजन किया है, ऐसे तपस्वी समूह के साथ नारद उस श्वेत साकेत नगर के लिए गया। उसने खोटी चेष्टा वाले उस द्विजश्रेष्ठ पर्वतक से कहा कि वन पशुओं को मारनेवाला दरिद्रों को चूरनेवाला चर्मों को छेदते हुए वक्षस्थलों को चीरते हुए ऋषि के द्वारा देखा गया यदि सुप्रशस्त और परमार्थ है, तो हे कुविवेकी, तुम खड्ग की पूजा क्यों नहीं करते? यदि वेद पौरुषेय (पुरुष रचित) नहीं है तो बताओ वर्णों की ध्वनि आकाश और मनुष्य के मुख में क्यों स्फुरित होती है ? अक्षर कहाँ, बिन्दु कहाँ, अर्थ कहां, छंद' कहाँ? किया गया है मन का प्रयल जिसमें ऐसे मनष्य के मुख बिना उत्पत्ति (कारण) को और बेद कहाँ कहाँ शान? और कहाँ शेय? कहाँ आकाश में कमल होता है ? अरूप में शब्द कैसे हो सकता है ? दूसरों का मांस खाने वाले हे द्विज, वेद में हिंसा कहाँ ? हिंसा से धर्म कहाँ ? मूर्ख, छल छोड़ । (पशुओं को काटने वाले, देने वाले और हवन करने वाले यदि मनुष्यों के नेता और देवांगनाओं के स्वामी होते हैं, तो (32) 1. A तवसथिदेण । 2. AP देख। 3. A अविचार; PT अवियार । 4.AP omit this foot.
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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