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________________ 68. 6. 81 महाका-युएफयंत-विरइया महापुराणु गइ मल्लिदेवि यमोहजालि चउपण्णलक्खवरिसंतरालि। उप्पण्णउ णिउ सक्केण तेत्यु तं मेरुमहागिरिसिहरु जेत्थु। अहिसिंचिउ पंडसिलायलग्गि १५ माणित णिहिट स्मारमिण! आणदें णच्चिउ कुलिसपाणि तह बयण विणिग्गय दिव्यवाणि । सुव्वउ मुणिसुव्वउ भणिवि णाहु गउ णिययणिवासहु तियसणाहु । घत्ता- वड्डइ देउ लहंतु पय लक्खणवंतु जणंतु सुहं जणि ॥ सालंकार कतिइ सहिउ कम्वविवेउ णाइ वरकइयणि ।।5।। 10 पहु वीससरासणमियसरीरु पियवयणभासि गंभीर धीरु। परिणयमऊरबरकंठवष्णु दहदहदहसहससमाउ वण्णु। सत्तद्धवरिससहसाई जाम थिउ कि पि बालकोलाइ ताम। दहपंचसहासद्दहं धरित्ति भुजिवि जोइवि करिवरहु वित्ति। आहारु ण गेण्हइ णेय चार पइ गरविंदहु वज्जरइ चारु। करि पुन्वतालपुरि आसि राउ कुच्छियमइ जणियकुपत्तभाउ । बंभणहं दितु मणिकण यदाणु मुउ काणणि हुउ गउ गलियदाणु । सुंयरइ सल्लइपल्लवदलाई। सुंयरइ सीयलसरिसरजलाई। के बाद, चौवन लाख वर्षे हो जाने पर उनका जन्म हुआ। इन्द्र उन्हें वहाँ ले गया कि जहाँ सुमेरुपर्वत का शिखर था। पांडुशिला के अग्रभाग पर उनका अभिषेक किया गया। उन्हें घर लाया गया, और अपनी माता के सामने रख दिया गया। इन्द्र आनन्द से खूब नाचा, उसके मुख से दिव्यवाणी निकली, नाथ को सुव्रत मुनिसुव्रत कहकर देवेन्द्र अपने निवास स्थान के लिए चला गया। घता-लक्षणयुक्त पद (चरण) लेते हुए, जनों में सुखै उत्पन्न करते हुए, अलंकारों से युक्त तथा कान्ति से सहित देव उसी प्रकार बढ़ने लगते हैं जैसे श्रेष्ठ कविजन में काव्यविवेक बढ़ने लगता है ॥5॥ 16) स्वामी का शरीर बीस धनुष प्रमाण सीमित था। वह प्रिय वचन बोलने वाले गंभीरधीर थे। उनकी कान्ति तरुण मयूर के कण्ठ के रंग की थी। उनकी आयु तीस हजार वर्ष की थी। जब साढ़े तीन हजार वर्ष हुए, तब तक वह बाल क्रीड़ा में स्थित रहे। इस प्रकार पन्द्रह हजार वर्षों तक धरती का भोगकर; तथा गजवर की वृत्ति देखकर कि वह आहार नहीं करता है न तृणकमल लेता है, राजाओं के स्वामी वह यह सुन्दर बात कहते हैं कि पहिले यह हाथी तालपुर में अत्यंत खोटी बुद्धि वाला और अत्यंत कुपात्रभाव वाला राजा था। यह ब्राह्मणों के लिए मणि और सोने का दान देता था। मरकर वन में यह, जिसका मदजल गल रहा है, ऐसा हाथी हुआ। 4. AP add after this : वसाहमासि पर कसणपविख, दहमइ दिणि ससि थिइ सवणरिक्खि । 5. P धरि 16.A कतिसहिउ । (6) 1. AP सत्तद्धसहसवरिसाई।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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