SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण [68. 1.13 तिहयणि ण कोइर. इसमःगु समा जानु नाचा गु णिच्चल परिपालिय सुवयासु पणवेप्पिणु तहः मुणिसुब्बयासु। पत्ता-तहु जि कहतरु वज्जरमि श्रेण विमुच्चमि दुग्गइदुक्खहु ॥ 15 अटु दि कम्मई णिट्ठविवि देहु मुएप्पिणु गच्छमि मोक्खहु ।।1।। एस्थेव य कयकरारिकंप भरहंगदेसि पुरि अस्थि चंप। तहिं असिजलधारा हरियछाउ जगु जेण कियउ हरिवम्मराउ। सो एक्कहिं दिणि उज्जाणु पत्तु दिट्ठउ अणतथीरिउ विरत्तु । अणगार णाणि परमत्थसवणु वंदेप्पिणु णिसुणिवि धम्मसवणु। सत्तंगसंगु सुइ णिहिउ रज्जु अप्पणु पुणु कियउं परलोयकज्जु । तत्तउं तउ सहुं बहुपस्थिवेहि णिग्गथमगपत्थियसिवेहि। होइवि एयारहअंगधारि अरहंतपुण्णपन्भारकारि। तणुचाएं मुउ हुउ प्राणइंदु हरिवम्मु सकतिइ जिसचंदु । तहु आउ वीससायरई तेत्यु तणु भणु विहत्थि पुणु तिउणु हत्यु । सियलेसु चित्तपडिचारवंतु अवहीइ णियइ पंचमधरंतु। 10 णीससइ देउ दहमासएहि पुणु वीसहिं वरिससहसगएहि । जिनका सम्यग्दर्शन आकाश के समान अनंत है, जिन्होंने निश्चित रूप से सुबतों का परिपालन किया है, ऐसे उन मुनिसुव्रत को प्रणाम कर-- पत्ता–उन्हीं के कथांतर को कहता हूँ, जिससे मैं दुर्गति के दुःख से विमुक्त हो सकू, आठों कर्मों का नाश कर और शरीर का त्याग कर मोक्ष पा सकू ।।1।। इसी भरत क्षेत्र के अंग देश में चंपा नाम की नगरी है। उसमें क्रुर शत्रुओं को कंपन उत्पन्न करने वाला हरिवर्मा नाम का राजा था। जिसने असिरूपी जलधारा से विश्व को कान्तिहीन बना दिया था ऐसा वह एक दिन उद्यान में पहुँचा, वहाँ उसने अनंतवीर्य नामक विरक्त मुनि को देखा, जो परिग्रह से रहित, झानी तथा वास्तविक श्रमण थे। उनकी वन्दना कर और 'धर्म' का श्रवण कर पुत्र को सप्तांग राज्य देकर उसने स्वयं अपना परलोक का काम साधा दिगम्बर मार्ग से जिन्होंने कल्याण की प्रार्थना की है ऐसे बहुत-से राजाओं के साथ उसने तप किया। ग्यारह अंगों को धारण करते हुए, अरहंत के पुण्य का उत्कर्ष करते हुए शरीर छोड़कर, कान्ति में चन्द्रमा को जीतनेवाला वह हरिवर्मा प्राणत इन्द्र हुआ। वहाँ उसकी आयु बीस सागर थी। उसका शरीर तीन हाथ का था । श्वेत लेश्या से युक्त वह मनःप्रवीचार वाला था। अवधिज्ञान से वह पांचवें नरक की भूमि तक देख सकता था। दस माह में वह श्वास लेता था तथा बीस हजार वर्ष बीतने पर 10. Pतुह। (2) 1. AP कयउ । 2. P हरिवम्म । 3. A सशु पहवि मुउ। 4. AP पाणइंदु । 5. A पाससहाएहि; Pवाससहसगएहि ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy