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________________ महाका-पुप्फयंत-विर इयउ महापुराणु अठ्ठसहिमो संवि जो तित्थंकर वीसमउ बीसु विसयविसवेणिवारणि ।। जोईसरु जोइहिं णमिउ' जो बोहित्थु भवण्णवतारणि ॥ध्रुवकं ।। जो दिव्ववाणिगंगापवाह जो रोस हुयासणवारिवाहु । जो मोहमहाधणगंधवाहु जो मोक्खणयरवहसस्थवाहु । तणुगंधे जो सनु चंदणासु पउणइ जो तेएं चंदणासु। जो पणमिउ रामें लक्षणेण धम्मेण अहिंसालक्खणेण। जणु जेण णिहिउ सग्गापबग्गि जो सरिसचिस्तु रिउबंधु वग्गि। जे मिच्छतुच्छधीरंगरत दप्पि दुट्ठ तिट्ठागरत। जे धुम्मिरक्छ पीयासवेण जे बद्धा गुरुकम्मासवेण । जे कयलालस मासासणेण जे विरहिय परहियसासणेण । जेणारिहिं वसा आया रएण ते मक्क जास आयारएण, सुद्धोयणि सुरगुरु कविल' भीम वयणेण विणिज्जिय जेण भीम। अड़सठवीं संधि जो बीसवें तीर्थकर हैं, जो विषयरूपी विष के वेग को दूर करने के लिए गरुड़ हैं ,जो योगीश्वर योगियों के द्वारा प्रणम्य हैं और जो संसार रूपी समुद्र के संतरण के लिए जहाज हैं। 10 जो दिव्यवाणी रूपी गंगा के प्रवाह हैं, जो क्रोध रूपी अग्नि के लिए मेघ हैं, जो मोह रूपी महामेघ के लिए पवन हैं, जो मोक्ष रूपी नगर-पथ के लिए सार्थवाह हैं, जो शरीर की गन्ध से चन्दन के समान हैं, जो अपने तेज से चन्द्रमा का तिरस्कार करने वाले हैं, जो राम और लक्ष्मण के द्वारा प्रणम्य हैं जिन्होंने हिंसा लक्षणवाले धर्म के द्वारा लोगों को स्वर्ग और मोक्ष में स्थापित किया है, जो शत्रुवर्ग और मित्रवर्ग में समान चित्त है। (ऐसे भी लोग हैं जो मिथ्यात्व और ओछी (सांसारिक) बुद्धि के राग में अनुरक्त हैं, गर्वीले, दुष्ट और तृष्णा रूपी विष से युक्त हैं, मद्य पीने के कारण जिनकी आँखें घूम रही हैं, जो भारी कर्मों के आस्रव से बंधे हुए हैं, जो लालसा करने वाले हैं, जिसमें एक माह में आहार ग्रहण किया जाता है, ऐसे तथा दूसरों का कल्याण करने वाले जिन शासन से, जो रहित है, जो राग से नारियों के वचनों के अधीन हैं, वे भी उन मुनिसुव्रत तीर्थकर के आचार के अनुष्ठान से मुक्त हुए हैं। जिन्होंने अपने भयंकर शब्दों से गौतम कपिल और भीम को जीत लिया है। ऐसे मुनिसुव्रत के समान दूसरा कोई नहीं है। (1) 1. AP णविउ । 2. A 'बहे सत्य। 3. AP पविज । 4. AP जो। 5. AP घुम्मिरच्छि। 6. AP add after this: जे बिरहिय (P रहिय) सया वि आयारएण। 7. A वसु आया। 8. A जे मुक्क । 9. AP add after this: सेलोइयसुदायारएण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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