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________________ [227 10 80. 3.7] महाकइ-परफयंत-चिरइयज महापुराण वंदियधवलजिणालयसेसहि उववणि' णिवडियअलिउलकेसहि। देउलदंतपंतिदावंतिहि णयरीकामिणीहि गंदंतिहि ।। जणि जाणिउ इक्खाउ पहाणउपस्थिउ णामें णिवसइ राणउ । सइ कलहंसबंसवीणा णि णामेण जि तहु सुंदरि पणइणि । वासपवेसु व पुण्णपसत्यहं सुउ सिद्धत्थु सव्वपुरिसत्यहं । घत्ता-ता गरेण रिदहु विष्णविउ विद्ध सियजणदुच्चरिउ॥ मणहरि णंदणवणि अवयरिउ मुणिवरु णामें आयरिउ ॥2॥ दुवई–ता सहुं सुंदरीइ सहुं तणएं सहुं परिवाररिदिए । __ गज परवाह वणंतु बंदिउ मुणि मणवयकायसुद्धिए ॥छ।। राएं भुवणंभोरुहणेसरु पुच्छिउ तच्चु कहइ परमेसरु । अप्पज एक्कु णाणदसणतणु णिज्जरु दुविहु दलियदुक्कियमणु'। जोय तिण्णि गारव असुहिल्लई जीवगईउ तिण्णि मणसल्लई। तिण्णि गुणवय चउ सिक्खावय चउ कसाय कयचउगइसंपय । चउ विण्णासवयई चउ झाण पंच सरीरइंपंचविणाणई। के निर्माल्य से सहित है, जो उपवन में आते हुए अलिरूपी केशकुलवाली है, जो देवकुल रूपी दांतों की पंक्ति दिखानेवाली है, ऐसी आनन्द करती हुई गरी पी कानी में था कुल का प्रधान पार्थिव नाम का राजा था। उसकी कलहंस और वीणा के समान स्वरवाली सुन्दरी नामकी सती पत्नी थी। पुण्य से प्रशस्त सर्वपुरुषार्थों में अभिनव गृहप्रवेश के समान सिद्धार्थ नाम का पुत्र था। पत्ता-तब किसी आदमी ने आकर राजा से निवेदन किया-जिन्होंने लोगों के दुश्चरित्र का विध्वंस कर दिया है, ऐसे आचार्य नाम के मुनिवर मनोहर उद्यान में अवतरित हुए हैं। (3) तब सुन्दरी के साथ, पुत्र के साथ और परिवार की ऋद्धि के साथ, राजा वन में गया। उसने मन-वचन-काय की शुद्धि से मुनिवर की वन्दना की। राजा के द्वारा पूछे जाने पर विश्वरूपी कमल के सूर्य परमेश्वर ने तत्त्व का कथन किया-आत्मा ज्ञान-दर्शनस्वरूप है, दुष्कृत मन का नाश करनेवाली निर्जरा दो प्रकार की है। योग तीन प्रकार का है (मनोयोग, वचनयोग और काययोग)। तीन अशुभ गर्व हैं। जीव की तीन गति हैं (पाणिमुक्त, गोमूत्रिका और लांगलिका)। मन की तीन शल्य हैं। गुणवत तीन हैं। शिक्षाप्रत चार हैं। चार गतियों को प्राप्त करानेवाली चार कषायें हैं। विन्यासबत चार प्रकार के हैं (नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से)। चार ध्यान हैं, पाँच शरीर और पांच ज्ञान हैं। पाँच महाव्रत और पांच आचार हैं। विश्व में श्रेष्ठ 4. A उबवणणिवरिय । 5. A तहु णामें सुदरि पहपणइणि; P तहु णामें सुंदर पियपणइणि। 6. A वासु पवेसु । 7. A मणहर' । 8. P आइरिउ । (3) 1. P दुविक्रयगणु । 2. P तिणि वि गुणवय। 3. P पंच बि।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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