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________________ 226] [80. 1. 11 महाकषि पुष्पदन्त विरचित महापुराण जम्मि थिए सुइजागए जम्मजलहिजलजाणए। कि पढ़ति मयमारया कामंधा सामारया। सइ सम्मि सगारवं कीस कुणंति बगा रवं। तं गमिऊण णमीसरं तवसिहिहुयवम्मोसरं। पत्ता-पुणु तासु जि चरिउ कि पि कहमि सज्जणकोऊहलजणणु ।। कहिए: वेण दिहि विमा मुटु उपदणाणतणु।। 15 दुवई-जंबूदीवि भरहि सुच्छायउ वच्छउ विसउ' बहुधणा॥ तहि कोसंबिणयरि चउदारविलंबियरयणतोरणा॥छ। घरगयमोरहंसआहरणहि कुंकुमपंकपसाहियचरणहि । मणिविक्कयमुत्ताहलहारहि दोसियदंसियचीरवियारहि । लोहहट्टलोहेण णिबद्धहि विक्कमाणणाणारसणिद्धहि । वलयारा-णपडियवलयहि' णिज्दभुयंगसंगकयपुलयहि । विविधयवडुप्परियणचवलहि महिलायणकमणेउरमुहलहि। मंदिरकणयकलसथणवंतहि पविमलपाणियछायाकंतहि । लक्ष्मी की इच्छा करते हैं, शास्त्रों के ज्ञाता, तथा जन्म रूपी जलधि के जलयान नमि तीर्थंकर के स्थित होते हुए; पशुओं की हत्या करनेवाले, काम से अन्धे, श्यामा में रत (मिथ्यावृष्टि) लोग क्या पड़ते हैं ? हंस के रहते हुए बगुले भला क्या गौरवपूर्ण शब्द करते हैं ? अत: कामदेव को भस्म करनेवाले उन नमीश्वर को प्रणाम कर, पत्ता--फिर उन्हीं का कुछ चरित कहता हूँ जो कि सज्जनों के हृदय में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला है, जिसके कहने से भाग्य का विस्तार होता है और ज्ञानस्वरूप सुख उत्पन्न होता है ।। (2) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुन्दर छायावाला और सम्पन्न वत्स नाम का देश है। उसमें, जिसके चारों द्वारों पर रत्नतोरण लटक रहे हैं ऐसी कौशाम्बी नगरी है, जो गृहस्थित मयूरों और हंसों रूपी आभरणों से युक्त है, जिसके चरण केशर-पराग से प्रसाधित हैं, जो मणियों द्वारा मेचे गए मोतियों को धारण करनेवाली है, जो दोसिय (कपड़े का व्यापारी, दोषी) व्यक्ति को वस्त्रों का विकार दिखाती है, जो लोह के हाट के लोह (लोहा, लोभ) से निबद्ध है, जो बिकते हए नामा रसों से स्निग्ध है, जिसके वलयाकार बाजार में बलय प्रगट हैं, जो नित्य भुजंगों (भोगी लोग, कामी लोम) के साथ रोमांच करनेवाली है, जो विविध ध्वजपट रूपी उपरितन बस्त्र से चंचल है, जो महिलाजनों के चरणों के नूपुरों से मुखर है, जो मन्दिर के कनक-कलश रूपी स्तनों से युक्त है, जो स्वच्छ जल को छायाकान्ति से युक्त है, जो वंदना किए गए जिनालयों 2.A विगारवं। (2) 1. APदेसू। 2. A कुंकुमपंकहि सोहिय; P कुंकुमपंकपसोहिय । 3. A वलयारोवण ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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