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________________ [211 78.29. 12] महाकइ-पुपफयंत-विरइयड महापुराणु पत्ता-ते रामजणद्दण दणुयविमद्दण परिभमंति भुवणयलइ॥ आवाहियचल रह णावइ सभरह पुप्फयंत गयणयलइ ।।2911 इय महापुराणे तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महाभयभरहाणुमण्णिए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकवे रावणणिहणणं' विहीसणपट्टबंधो णाम अट्ठहत्तरिमो परिच्छेओ समत्तो ॥78।। पत्ता-राक्षसों का दलन करनेवाले वे राम और लक्ष्मण भुवनतल में परिभ्रमण करते हैं, जिन्होंने नंग दचों को रहा है ऐन-दामो सूर्य, चम, दातों सहित, आकाशतल में चल रहे हों। मेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकषि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का रावण-निधन एवं विभीषण पट्टबंध नाम का अठहत्तरवां परिच्छेद समाप्त हुआ। 3.A °णिग्गहणं । 4. AP °पट्टगंधणं ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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