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________________ 78. 28.8] महाका-पुस्कयंत-विरहयउ महापुराण [209 दिव्यवाणि जाणियपरमत्यहु' वरकइमइ णं पंडियसत्थहु । चित्तबुद्धि णं चारुमुणिदहु णं संपुण्णकति छणयंदहु। णं वरमोक्खलच्छि अरहतहु बहुगुणसंपय णं गुणवंतहु । पत्ता--जं दिठ्ठ समाहउ णियपइ राहउ तं सीयहि तणुकंचुइउ ।। 15 पुलएण विसट्टउ उद्ध जि फुट्टउ पिसुणु व सपखंडई गयउ ।।27। 28 दुवई-तोरणविविहदारपायारघरावलिसिहरसोहिए ॥ ____ अरिवरपुरि पइट्ट हरिहलहर धयमालापसाहिए ।।छ।। मंदोयरि रुयंति साहारिवि इंदइ सोयविसंठुलु' धीरिदि। बंधव सयण सयल हकारिवि णाय रणरहं संक णीसारिवि। मंति महंतमंति संचारिवि विग्घकारि सयल' विणीसारिवि। पढमजिणाहिसेउ णिवत्तिवि होम विविहदाणाई वत्तिवि। सत्तु मित्तु मज्झत्थु वि चितिवि समइ सव्वसामंत णियंतिवि। अवणिदविणपुरलोहु विवज्जिवि गह बंभण णेमित्तिय पुज्जिवि । को दिव्यवाणी मिली हो, मानो पंडित समूह को श्रेष्ठ कविमति मिली हो। भव्य मुनियों को मानो चित्तशुद्धि मिली हो । मानो पूर्ण चन्द्र को सम्पूर्ण कान्ति मिली हो । मानो अरहंत को चरम मोक्ष लक्ष्मी मिली हो । मानो गुणवान् को बहुगुण संपत्ति मिली हो। घत्ता-जब अपने पति राघव को लक्ष्मण के साथ देखा तो सीता की देह पर कंचकी पुलक से विकसित होकर ऊपर-ऊपर फट गयो और दुष्ट की तरह सैंकड़ों खण्डों में विभक्त हो गयी। (28) जो तोरणों, विविध द्वारों, प्राकारों और गृहावलियों की शिखरों से शोभित है, ध्वजमालाओं से प्रसारित ऐसी लंकानगरी में राम और लक्ष्मण ने प्रवेश किया। रोती हुई मंदोदरी को ढाढस बँधाकर शोक से अस्त-व्यस्त इन्द्रजीत को धीरन देकर, समस्त स्वजनों और बांधवों को बुलाकर, नागर-नरों की शंका दूर कर, छोटे-बड़े मंत्रियों से मंत्रणा कर, समस्त विध्न करनेवालों को निकाल बाहर कर, सबसे पहिले जिनेन्द्र का अभिषेक कर, होम और विविध दानों का संपादन कर, शत्रु और मित्र में मध्यस्थता के भाव का विचार कर, समस्त सामन्तों को अपने मत में नियन्त्रित कर, धरती, वन और पुर लोक को छोड़कर, ग्रह, ब्राह्मणों और नैमित्तिकों की पूजा कर, प्रवर पुरुषों के परिहास की इच्छा कर, धर्म का पालन 7. APणं जगपरम 18. A णं तिल्लोक्कलन्छि । (28) 1. P भोयविसंठलु 1 2.AP वारिवि। 3. AP विग्यकारिणीसेस णिवारिवि। 4.A अणि दविणु पुरलोहः अवणिदविणपरलोहु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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