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________________ 208] महाकवि पुष्पद विरचित महापुराण दिणु हुया सिहालिउ कइ पण कढिज्जर लग्गउ efeoदेहु छिवहूं णं संकइ । पहुउपरि चडंतु णं भग्गज । धत्ता - जो सीमासावें' नियमणकोवें दूसविरहें जालियउ ॥ सोराउ हुया पेपलासें जालकरगें लालियर || 2611 27 तासु सरीरु तेण उवजीविउ जं जाभुवि तं तासु जि छज्जइ हाइविसयहिं दिष्णउं पाणिउं एत्यंतर असोयवणि पइसिवि अंगण लील विही सहि पणविवि जणवसुंधरिधी यहि आणिय मिलिय' देवि बलहद्दछु हेमसिद्धि गाव रससिद्धहु दुबई – आणिदि भुख परिचूडामांग सज्यं समुगाओ ॥ तहु सत्तच्चि सत्तधाऊहरु झत्ति धग त्ति लगाओ ॥ छ ॥ बइरिविडणुकालें लद्धउ तिहुयणकंटज जलणें खद्धउ || तो विण पोरिसेण जगु दीविउ । करवरणि किं उरु जुज्जइ । दुत्थि बंधुविदु संमाणिउ । रामाए देवि पसंसिदि । अंजणेय किणरेसिहि । केस विजउ समासिउ सीयहि । अमरतरंगिण णाइ ससुद्दहु । केवलणारिद्धि णं बुद्धहु । 7B. 26.9 10 5 10 रावण के शरीर को छूने में सकुचाती है, मानो पवन के द्वारा वह खींची जाने लगी, मानो प्रभु (रावण) के ऊपर चढ़ती हुई नष्ट हो गयी । यत्ता - सीता के शाप अपने मन के कोप और असह्य विरह से जो जला दिया गया या वह राजा (रावण) प्रेत मांस खानेवाले अनल के द्वारा ज्वाला रूपी कराय से छू लिया गया। (27) यह जानकर कि नरेन्द्र-चूड़ामणि (रावण) मर चुका है, समस्त शरीर से निकलती हुई सात धातुओं का हरण करनेवाली आग उसे शीघ्र ही धक् करके लग गई । शत्रुओं के विघटन करनेवाले को काल ने ले लिया। त्रिभुवन के कंटक को आग ने खा लिया। उसके शरीर को उसी ने आश्रय दिया, फिर भी पौरुष से विश्व आलोकित नहीं हुआ । जिसका जो है उसको वही शोभा देता है। गैर के पैर में क्या घुंघरू बांधा जाता है ? स्नान कर स्वजनों ने पानी दिया और दुःस्थित बंधुजनों को समाश्वस्त किया। इसी बीच अशोक वन में प्रवेश कर राम के आदेश से देवी की प्रशंसा कर अंग, अंगद, नल, नील, विभीषण, हनुमान् और सुग्रीव ने प्रणाम कर जनक और वसुंधरा की बेटी सीता को संक्षेप में राम की विजय को बताया और वे उसे ले आए। देवी बलभद्र से मिली जैसे गंगा नदी समुद्र से मिली हो, जैसे हेमसिद्धि रससिद्धि से मिली हो, केवलज्ञान सिद्धि मानो पंडित को मिली हो, परमार्थ को जानने वाले 4. A सोमासोएं 5. AP तादियउ। 6. AP करहिं जालियड T सालिड स्पृष्टः । ( 27 ) 1. AP समगाओ। 2. P ° धाहुहरु । 3 A तो उण 4. A बंधुवन्तु। 5. AP विविधपुरेसहि । 6. AP देखि मिलिय ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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