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________________ 10 15 78. 22. 8] मानारदमयंत-विसापड महापुराण 1203 पायडियउ एवहिं कि किज्जइ वर णियणाहें समउं मरिज्जइ । का वि भणइ णिणियह ण याणिय पहुणा गोत्तमारि कहिं आणिय । डज्मउसीय सुविप्पियगारिणि खलदइवें संजोइय वइरिणि । का वि भणइ उठधसि पिउ मेल्ल हि रंभि तिलोत्तमि कि पि म बोल्लहि । कण्णावरु इहु णाहु महारउ अत्थक्कइकिह होइ तुहारउ। कासु वि सिवपयगमणविसेसें समरदिक्ख दक्खालिय सोसें। पत्ता-ता तहि मंदोपरि देवि किसोयरि थण अंसुयधारहि धुवइ ।। णिवडिय गुणजलसरि खगपरमेसरि हा हा पिय भणंति रुयइ॥2॥ 22 दुबई-हा केलाससेलसंचालण हा दुज्जयपरक्कमा || हा हा अमरसमरडिडिमहर हा रिणारिविक्कमा ।।।। हा भत्तार हार मणरंजण' हा भालयलतिलय णयणंजण। हा मुहसररुहरसरयमहुयर हा रमणीयणणिलय मणोहर । हा सहन सुरहियसिरसेहर हा रिउरमणीकरकंकणहर । हा थणकलसविहूसणपल्लव हा हा हिययहारि णिच्चं णव । हा करफंसजणि यरोमंचुय 'आलिंगणकीलाभूसियभुय । पेसलवयणविहियसंभासण' हा माणसिणिमाणबिणासण । प्रगट किए गए। अच्छा है, इस समय प्रिय स्वामी के साथ मरा जाए। कोई कहती है-मैं अपनी नियति नहीं जानती, प्रिय यह गोत्रमारि कहाँ से ले आये। अत्यन्त बरा करने वाली सीता देवी में आग लगे, दुष्ट विधाता ने उस वैरिन का संयोग कराया । कोई कहती है-हे प्रिय, उर्वशी को छोड़ दो, रंभा और तिलोत्तमा के विषय में भी कुछ मत बोलो। कन्या का वर, यह मेरा स्वामी है, इस समय यह तुम्हारा कैसे हो सकता है ? शिवपदगमन विशेष (शिवा के पर के गमन विशेष, मोक्ष पद पर गमन विशेष वाले) सिर के द्वारा किसी की समर दीक्षा दिखाई जा रही थी। - घत्ता-उस अवसर पर वहाँ कृशोदरी देवी मंदोदरी अपने स्तनों को अश्रुधारा से धोती है। गिरी हुई गुणजल रूपी नदी वह विद्याधर परमेश्वरी हा प्रिय हा प्रिय कह कर रो उठती है। (22) हा, कैलाश पर्वत का संचालन करने वाले, हा सिंह के समान पराक्रमवाले, हा स्वामी, हा सुंदर मनरंजन, हा भालतल के तिलक, आँखों के अंजन, हा सुख रूपी कमल के गुनगुनाते भ्रमर, हा सुन्दर रमणीजनों के घर, हा सुभग सुरभित शिरशेखर, हा शत्रुस्त्रियों के कंगन का हरण करने वाले, हा स्तनरूपी कलश के अलंकरण पल्लव, हा हा हृदय हरण करने वाले नित्य नव, हा करस्पर्श से रोमांच उत्पन्न करने वाले, हा आलिंगन की क्रीड़ा से भूषितबाहु, हा हा कुशल वचनों से संभाषण करने वाले और मनस्विनियों के मान का विनाश करने वाले, हा पंचेन्द्रिय 8. A पहु। 9. A अच्छा कह थि; P अथकए किह । (22) 1. P जणरंजण। 2. A बहसरह) 3. AP रमणीमण° 4. A हालिगण। 5. AP विहियवपण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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