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________________ 202] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण कुडिल लोहणिम्मिय पडिअंकुस खलिई विडियाइं पल्लाणइं दिgi franate कंकाल' मकतलक डिसुत्तई' पत्ता - भडभाल विणिहिय जाइवि" यचम्म दिट्ठातुर जंत तोडियकुस । दिई बिडियाई जंपाणदं । मासमासु लेंऩई वेयालई । दिट्ठई दसदिलासु पवित्तरं । विहिणा लिहियई अचलई भविष्वक्खरई ॥ संदणरम्मह" कावालिउ वायइ वरई ||20|| 21 दुबई - पडिवारणविसाणजुयपेल्लियघल्लियमत्तवारणे' ॥ होही रिउ मरणु हरिहृत्यें सीयाकारणे रणे ॥ छ ॥ [78. 20. 10 १७ तहि हितहि विहिविच्छोइय काइ पिउ सरसयणि पसुतउ काइ कि पिलियं तहिं रुद्ध खंड खंड' हुउ मुड गोलक्खि उ उज्जएण' पडिएण महाहवि का विभागइ हलि जूर' महु मणु रिणिहिणियणियपियथम जोइय । दिट्ठउ णं णलच्छिहि रसउ । दिट्ठउ णं जमसंकलबद्ध | काइ वि पि पयखंडे लक्खिउ' । कवि अंगुलियउ भंजइ राहवि । लक्खणेण महु रंडा लक्खणु । 15 5 कुटिल, लोह से निर्मित प्रति-अंकुश तथा तर्जक ( कोड़ा) तोड़कर जाते हुए अश्वों को देखा । पल्या स्खलित होकर गिर पड़े। जंपानों को विघटित होते हुए देखा । राजाओं के कपोल कंकाल दिखाई दिए। मांस का कौर खाते हुए बेताल देखे । कटक, मुकुट, कुंडल और कटिसूत्र दसों दिशाओं में बिखरे हुए देखे । पत्ता- विधाता के द्वारा लिखे गए देखने में सुन्दर, चर्म रहित, भटों के भालों पर स्थित, भवितव्यता के अचल श्रेष्ठ अक्षर जाकर, कापालिक पढ़ता है । (21) गजों के दंतयुगल से आहत और पतित है मत्तगज जिसमें ऐसे उस युद्ध में, सीता के कारण लक्ष्मण के हाथों शत्रुओं की मृत्यु हो गई । वहाँ भ्रमण करती हुई गृहिणियाँ विधाता के द्वारा वियुक्त अपने-अपने प्रियतमों को देखने लगीं। किसी ने प्रिय को शरशैया पर सोते हुए इस प्रकार देखा मानो, वह युद्ध - लक्ष्मी में अनुरक्त हो । किसी ने कटे हुए आंत्रजाल से रुद्ध प्रिय को इस प्रकार देखा मानो यम की सांकलों से बंधा हुआ हो। किसी के द्वारा खंड-खंड हुआ, मरा हुआ और नहीं पहिचाना गया प्रिय पड़े हुए सरल पाखंड के द्वारा महायुद्ध में पहिचाना गया। कोई प्रिय की अंगूठी को तोड़ती है। कोई कहती है - हे सखी, मेरा मन ( यह देखकर ) पीड़ित होता है कि मुझे लक्ष्मण द्वारा वैधव्य के लक्षण 5. A विहलिया। 6. A "कवाल । 7. AP कुंडल | 8. P भडसाल। 9. A जोइवि । 10. AP दंसणरम्मई । ( 21 ) 1. A पेल्सिवि । 2. P हरिअयें। 3 AP सरसयणइ सुत्तर 14 P खंडखंड। 5. P लविखयउ । 6. A उज्जुए। 7. A रई ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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