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________________ 200] महाकवि पुष्पकम्त विरचित महापुराण 178. 19.8 10 तूसबहि रामु करि' पयपणामु। जीवहि अतेउ कंतासमेउ। दट्टाहरेण असिवरकरेण । असमंजसेण अमरिसवसेण। ता भणि तेण णिसियरधएण। पाइक्कतणय णिम्मुक्कविणय। तुम्हई वराय कि मज्झु राय। णियजीवधरण सुग्गीवसरणु। पइसरहु जद्द बि णुव्वरह तइ वि। विगयावलेव देव वि अदेव। भडभिडणसंगि महुं जुज्झरंगि। किं गणिज रामु तुहुं हीणथामु। जजाहि रंक मगंतु लंक। लज्जहि ण केव हिय सीय जेव। अवराउ तेव परिचत्तसेव'। रामाणियाउ रायाणियाउ। लेसमिछलेण णियभुयबलेण.। इय भणिवि भीमु दुल्लंधधामु। आबद्धको मेल्लरु सरोहु। आइड्ढचाउ रायाहिराउ। जा उगभाउ वीसद्धगीउ । ता तक्खणेण तहिं लक्खणेण। णं खयययंगु मुक्कउ रहंगु। आयउ तुरंतु धारापुरंतु। हुए, हाथ में तलवार लिए हुए, उस निशाचरध्वजी ने कहा-जो दुविनीत मानवपुत्र है क्या बह तुम्हारा.बेचारा (राम) हमारा राजा होगा? अपना जीवधारण करने वाला यदि वह सुग्रीव की भी शरण में जाएं तो भी उसका उद्धार नहीं हो सकता। देव और अदेव भी, भटों की जिसमें भिड़त है, ऐसे युद्धरंग में अहंकार शून्य हो जाते हैं, हीनशक्ति तुम्हें और राम को मैं क्या गिन? रे दरिद्र जा-जा, लंका मांगते हए तो शर्म नहीं आती। रे सेवा का परित्याग करने वाले, जिस प्रकार सीता को अपहृत किया गया है, उसी प्रकार दूसरी भी रानियों को मैं अपने भुजबल और छल से ग्रहण करूँगा। यह कहकर भयंकर, राजाधिराज अलंध्यधाम रावण क्रोध से भरकर धनुष तानकर उन भाव से शर समूह छोड़ता है। तब उसी क्षण लक्ष्मण ने क्षयकाल के सूर्य के समान चक्र छोड़ दिया। धाराओं से स्फुरित होता हुआ वह तुरंत आया। 3. फयपय । 4. A गउ उव्वरह तइ वि; Pणउ उखुरहो तइ वि। 5. Padds after this : पिण्णटणामु, संगामकामु। 6. A तुई दिण्णधामु, 7. A परचिण्णसेव । 8. Pाब। 9.AP भावनाउ। 10. AP
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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