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________________ [199 78. 19.1] महाकर-पुष्पार्वत-विरदय महापुराण अरिणरकर्यतेहि कंपहिं कोंतेहिं। कयकाहपरवेण गवएं गवक्खेण। कुमुएण कुदेण चर्दै महिदेण'। सत्तुहणभरहेण णीलेण सरहेण। सुग्गीवणामेण हणुवेण रामेण । पडिखलिउ गउ बलिउ अमरत्थु संचलिउ । रणसिरिहि कुंडलु व णवरविहि मंडलु व। जसवल्लरीदनुव भुयजुयलतरु फलु । माणिक्कगणडिउ लक्खणहु करि चडि। घत्ता-जं चक्कसमिद्धा कण्हें लड तं णारउ णहि पच्चियउ' । आणदरसोल्लिउ सिरिथणपेल्लिउ राउ रामु रोमंचियउ || 18।। 10 19 दुवई-णिवडिय कुसुमविछि कउ कलयलु हरिसिय उरयसुरगरा ॥ भामिदि चक्क भणिज गोविदें विसरिस णिसुणि दससिरा ।।छ।। संदण तुरंग मयमुइयभिंग। करि गलियगंड मेइणि तिखंड। असि चंदहासु लंकाणि वासु । ससहरसमाणु पुप्फयविमाणु । वइदेहि देहि मा खयहु जाहि । कंपनों और कोंतों के साथ लक्ष्मण का पक्ष लेने वाले गवय, गवाक्ष, कुमुद, कुंद, चन्द्र, महेन्द्र, शत्रुघ्न, भरत, सरथ, नील, सुग्रीव, हनुमान् और राम के द्वारा वह चक्र प्रतिस्खलित नहीं हुआ, वह मुड़ गया। अमरशस्त्र (चक्र) चल पड़ा। रणलक्ष्मी के कुंडल के समान, नव रविमंडल के समान, यशरूपी लतादल के समान, बाहुयुगल के तरुफल के समान, माणिक्यसमूह से विजड़ित वह चक्र लक्ष्मण के हाथ पर चढ़ गया । घसा-जन चक्र की समृद्धि को लक्ष्मण ने धारण कर लिया तो आकाश में नारद नृत्य कर उठे । आनंदरस से उलित तथा लक्ष्मी के स्तनों से प्रेरित राजा राम भी रोमांचित हो उठे। (19) कुसुमवृष्टि होने लगी। कल-कल होने लगा। नाग, सुर और मनुष्य हर्षित हुए । चक्र घुमाते हुए गोविंद ने कहा-रे दशमुख, यह विशेष बात सुन ! स्यंदन, तुरंग, मद से मुदित भ्रमर जिस पर है ऐसा गलितगंड हाथो, त्रिखंड धरती, चन्द्रहास कृपाण, लंका निवास, चन्द्रमा के समान पुष्पक विमान और वैदेही दे दो, विनाश को प्राप्त मत होओ, राम को संतुष्ट करो, उनके चरणों में प्रणाम करो। तेज रहित अपनी पत्नी के साथ जीवित रहो। तब ओंठ चाबते 3. A मयदेण । 4. A aruits this foot. 5.A णहवडिउ। 6. AP चक्क 1 7. AA णघिउ । 8. A रामु रार। 9. AP रोमंघिउ । (19) 1. PA "मुइयसिंग। 2. P ससहरू।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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