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________________ 170] महाकवि पुरुपरन्त विरचित महापुराण [77. 4. 13 तत्यारूढो देवो रामो हरि हरिसिल्लो अंजणसामो! दरिसिययमुसलंकुसपासं भूगोयरसेण्णं णीसेस। चलियं गगणे खयराणीयं सामिकज्जि परिछेइयजीयं । णाणहरणविहूसियदेहं गयवरदंतवियारियमेहं। धत्ता-संदाणिय णहि ससिदिवसयर पेल्लापेल्लि जाय" खगरायहं ।। घयछत्तचलंतहं चामरहं हरिकरिरहवरभासंघायहं ।।4।। 15 हेला–णवणित्तिससंणिहे णयले चलंतं ।। मयगलमयजले बलं दीसए वहतं ।।छ।। करिछाहिहिं जलकरिवर विलग्ग जलणर णरवरपडिविबभग्ग । धावति मयर पल गिलणकाम झस सुसुमार गंभीरथाम । सीमंतिणिपडिरूबई णियंति जलदेवयाउ सीसई धुणंति। उज्जलमोत्तियभायणधरेहि पवणुद्ध यचलवीईकरेहि। गज्जइ समुह बाहरइ णाइ मरुपियंगु भयवसु व थाइ। सायरु लंधिवि परिहरिवि संक वेढिय विज्जाहरणिवर्हि लंक। किउ कलयलु रणपडहई हयाई भीरहुं चित्तई विहडिवि गयाई। लक्ष्मण तथा प्रसन्न हनुमान् आरूढ़ हो गए। जिसमें घोड़ों, मसलों, अंकुशों और पासों का प्रदर्शन किया गया है ऐसा मनुष्यों का निःशेष सैन्य चला। आकाश में स्वामी राम के लिए प्राणों की बाजी लगाने वाली, नाना अस्त्रों से अलंकृत शरीर वाली और गजवरों के दाँतों से मेघों को विदीर्ण करने वाली विद्याधरों की सेना चली। ___घत्ता-आकाश, सूर्य, चन्द्रमा स्थित रह गए । विद्याधर राजाओं के चलते ही ध्वजों, छत्रों, चामरों, घोड़ों, हाथियों, रथवरों और योद्धाओं से संघात से रेलपेल मच गई। (5) नव कृपाण की तरह कातिवाले आकाश में चलता हुआ तथा मदगज के मदजल में बहता हुमा सैन्य दिखाई दे रहा था। गजों के प्रतिबिम्बों से जलगज लग गए। जलमानुष नरवरों के प्रतिबिम्ब से भग्न हो गए। मांस खाने की इच्छा से मगर दौड़ रहे थे। मत्स्य और शिशुमार गंभीर शक्तिवाले थे। स्त्रियों के प्रतिबिम्बों को देखकर जलदेवियां अपना सिर धुनने लगतीं। उज्जवल भोती रूपी पात्रों कोधारण करने वाले तथा हवा से कंपित चंचल लहरों रूपी हाथों से समुद्र गरज रहा था, मानो उसे निमंत्रण दे रहा हो। हवा से प्रकंपित शरीर वह ऐसा लगता जैसे भयभीत हो । शंका छोड़कर, समुद्र को पार कर, विद्याधर राजाओं ने लंकानगर को घेर लिया। उन्होंने कोलाहल किया और युद्ध के नगाड़े बजवा दिए । कायरों के चित्त भग्न हो गए । सातों पाताल थर्रा उठे। उन्मार्ग 8. Pomits हरि। 9.A°णहससि । 10. AP पेल्लावेल्लि । 11.P जाइ। (5) I. मयरावले जले; Pमय रायलजले । 2. Aगलिण' ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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