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आलोचनात्मक मूल्याकन
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उछल रहे हैं, ऐसे लीलापूर्वक हंसती है। प्रिय के हापों से नहलाई गयी किसी की चोली का सूत्रजाल टुट जाता है, शिथिल गीला वस्त्र गिर जाता है, वह लजा जाती है, और पानी में अपना अंग छिपाती है। कोई लक्ष्मण के मुख की कांति से श्याम रक्त कमल को काला देखती है, सखियों को दिखाकर अपना विचार बताती है। कोई कानों से लग कर कहती है,हे ललित ! इसे सींचो यह पद्मावती है। जिससे यह आदरणीय विरहिणी श्रीवित रह सके इसे केशर का लेप दो। हे देव, इसे वक्षस्थल से पीड़ित करो।
यह सुनकर मान श्रेष्ठ कुमार ने एक को वस्त्र के अंचल से पकड़ लिया तथा एक और दूसरी के स्तनों पर थोड़ा-थोड़ा मुसकाते हुए उसने जलयंत्र से जल छोड़ा दिया।" (71/15-16)
स्त्रियों के प्रकार
सुन्दर वर या वधू पाने की चाह मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति है, जो मानव-मात्र में पाई जाती है। भारत की पितृप्रधान संयुक्त परिवार प्रया में (राजपरिवारों को छोड़कर) वर-वधू के चयन का अधिकार परिवार के प्रमुख को था । परिवार के स्तर और वर-वधू के भावी सुखी जीवन की दृष्टि से सम्बन्ध तय करते समय जिन बातों पर विचार किया जाता रहा है उनमें एक बात यह भी थी कि सामुद्रिक शास्त्र के लक्षणों के अनुसार घर और कन्या उपयुक्त हैं या नहीं। कभी-कभी इसका दुरुपयोग भी होता था। दुरुपयोग करने वाले हर युग में रहे हैं। राजा सगर की घटना इस बात का बढ़ा दिलचस्प उदाहरण है कि किस प्रकार चाटुकार मंत्रियों द्वारा सत्ता-प्रमुख उल्लू बनाए जा रहे हैं। राजा सगर चारणयुगल नगर के राजा सुयोधन की कन्या मलमा के स्वयंवर में जाता है। कन्या की मां अतिथि अपने भाई के पुत्र मधुपिंगल से उसका विवाह करना चाहती है। इधर, सगर की दासी मंदोदरी कन्या को बरगला लेती है । जब यह पता चलता है कि कम्पा मधुपिगल को ही दी जाएगी, तो सगर का मंत्री एक चाल चलता है। वह एक कपट-वाक्य ताइपत्र पर लिखकर चुपचाप मंजूषा में बन्दकर खेत में गड़वा देता है । दूसरे दिन हल चलाते समय किसान को वह मंजषा मिलती है । वह राजा सुयोधन को दिखाई जाती है। उसे भली-भांति पढ़ा जाता है। इतने में मंत्री पाहाण के छन वेश में आकर अत्यन्त मीठे राग में राजा को समझाता है कि जो घर काना, बोना. पीला. अन्धा, गंगा, लंगड़ा, निर्धन, दुर्बल, बुद्धिहीन, विट्ठल, मान और लज्जा से रहित, रोग से पराजित, कोड के कारण नष्ट शरीर, कटे हाथ-पैर वाला, निम्न काम करनेवाला, स्त्रियों और बच्चों की हत्या करनेवासा, कठोर, निर्दय, साधुकर्म की निन्दा करने वाला, जिसका अपया बढ़ रहा हो, खोटे कुल वाला, आलसी, व और कुत्सित देह वाला तथा दन्य को प्राप्त हो ऐसे लोगों को तो कुल और धन से हीन कन्या भी नहीं दी जानी चाहिए । जो रामा पिंगल को विवाह के मंडप में जाने की अनुमति देता है वह अपनी कन्या के लिए मेघश्य और दुख ही सायेगा।" (69/20-21)
ऊपर खोटे बर के जो लक्षण गिनाये गये हैं, उन्हें देखकर सामान्य आदमी भी अपनी कग्या ऐसे बर को नहीं देगा। लेकिन यह कहना कि पिंगल को कन्या देना उसके वैधव्य को बुलाना है, मंत्री का कपर कथन है।
सुनकर मधु पिंगल चुपचाप चल देता है और राजा सगर सुलसा से विवाह कर लेता है। जब रावण सीता पर मनुरक्त होता है तो मय उससे कहता है कि किसी स्त्री को अपने अधिकार में करने के पहले यह देख लेना जरूरी है कि वह भी अनुरक्त है या नहीं; और यह भी कि कामशास्त्र के अनुसार यह उपयुक्त है या नहीं । कामशास्त्र में स्त्रियों की चार जातियां बताई गई हैं भद्रा, मंदा, लता और हंसा । इनमें भद्रा सर्वांग सुन्दर होती है, जबकि मंदा मोटी, भारी और बड़े स्तनोंवाली । लता लम्बी, छरहरी, पसेकी तरह दुबली होती है, जबकि हंसा ठिगनी और मांसल ।