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________________ 73. 30.9] महाकइ-फयंत विरइयउ महापुराण तं णिसुणिवि हणुएं उत्तु एव दिउ रावणणं कलिकयंतु दिट्ठी मंदोयरि पिउ चवंति अवरु वि दिउं आरामतु दिट्ठी जाणइ जीवंत देव । सोहि सकामयणाई देंतु । देवहि हिउल्लउं संथवंति । उपण चक्कु पहाफुरंतु । घत्ता - सिरिमंतु सरूवु' वि दहवयणु सीयहि मणु णासंघइ ॥ भरहुपरिगामियतेयणिहि पुप्फयंत' को लंघइ ||30| इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारे महा भव्वभरहाणुमण्णिए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकव्वे सुग्गीवहणुनंतकुमारागमणं सीयादंसणं णाम तिसत्तरिमो परिच्छेओ समत्तो ||73 || [125 संस्तुति करती हुई मंदोदरी देवी को देखा है। और मैंने देखा है-ओं ही मह प्रचा 'धमकता उत्पन्न हुआ चक्र | सठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदंत द्वारा विरचित एवं महाभस्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का सुग्रीवहनुमान् कुमारागमन-सीतादर्शन नाम तेहत्तर परिच्छेद समाप्त हुआ । 10 धत्ता - श्रीसम्पन्न एवं रूपवान् होकर भी रावण सीता के मन का आश्रय नहीं पा सका । भारत के ऊपर जाने वाले तेजनिधि सूर्य चन्द्र का उल्लंघन कौन कर सकता है ? 5. AP महाफ़रंतु । 6. AP सुरू | 7. P पुकतु । 8. A हुणवंत कुमारगमणं णाम वित्तरिमो ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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