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________________ 1241 महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण [73. 29, 12 उवाणिउ माहिमु दहि गब्बु णं दहमुहि सीयामाणगठबु । उपणिउ बहुविह धोराइपाणु णं दहमुहरमणहु कोसपाणु। अइसरम भक्तई चक्खियाई णं दहमुहि सर सई भक्खियाई। पाइकत्र व धमत्तापवाण. भायण मुराबीरास: 15 अच्चविप पुण मुद्धहि बिहाइ पाणि उं दिष्णउं दहमुहहु णाइ। घता---पूत्रफलेण सचुण्णएण पसगुणेण समग्गउ ।। तंबोलराउ रामु व सइहि छज्जइ अहरविलग्गज ।।29।। 20 दुबई--इय भुजेवि भोज्जु भूमीसुय सीलगुणबुवाहिणी ॥ थिग णंदणवणंति सीसवतलि' सीरहरस्स रोहिणी ॥छ।। एत्तहि हणुमं विपत तित्थु अच्छइ दुग्गंतरि रामु जेत्थु । हा सीय सीय सकलुणु कणंतु णियकरयलेण उरु सिरु हणंतु । जोल्लाबिल मारुइ ते वायत्थु । मउडग्गचडावियउयहत्यु। भणु कि दिट्टर मिसुरिणणेत्तु कि णउ कुमार मेरगं कलत्तु। कि मुच्छिउणिवडइ जीवचत्तु किं भहुं विरहें पंचत्तु पत्तु । भैस का गाढ़ा दही लाया गया, मानो दशमुख में सीता का मान गर्व हो । अनेक प्रकार का बेरादि का पानी लाया गया, जो मानो दशमुख के रमण के कुसुम्भ रंग का पान था । इस प्रकार अत्यधिक सरस खाद्य पदार्थों को उसने चखा मानो दशमुख में कामानुबद्ध वचन स्वयं खा लिए गए हों। कवि के काव्य के समान जिसमें मात्रा का प्रमाण किया गया था। फिर मुग्धा के लिए आचमन हेतु दिया गया पानी ऐसा शोभा देता था, मानो देशमुख के लिए पानी दिया गया हो। घत्ता-चूने से सहित पत्र (पात्र, पान) के गुण और सुपाड़ी से समग्र अधरों पर लगा हुआ ताम्बूल राग उस सती के लिए राम के समान शोभित होता था। (30) शीन जन की नदी पृथ्वी-सुता श्रीराम की पत्नी सीता इस प्रकार भोजन कर नंदन वन में शिशपा वृक्ष के नीले जैठ गई । __ इधर हनुमान् भी वहाँ पहुँचा जहाँ दुर्ग के भीतर राम थे। हा सोते हा सीते कहकर करुण रुदन करते हुए तथा अपने हाथ से उर और सिर पीटते हुए उन्होंने, जिसने अपने दोनों हाथ मुकुट के अग्र भाग पर बड़ा रखे हैं ऐसे कृतार्थ हनुमान् से पूछा--हे कुमार बताओ तुमने शिशुमृगनयनी मेरी स्त्री को देखा या नहीं ? मेरे विरह में मूच्छित पड़ी है, या कि त्यक्त जीवन वह मृत्यु को प्राप्त हो गई है ? यह सुनकर हनुमान ने कहा-हे देव मैंने जानकी को जीवित देखा है। कलिकृतांत रावण को सोना देवो से सकाम बचा कहते हुए देखा है। प्रिय कहती हुई तथा देवी के मन की 7. P कोरामाणु । 8.A कदमत्तावाणु; P कयमत्तापमाणु। 9. AP अचवियां । (30) !. Pजी सवयलि । 2.4 हणवतु । 3. A श्यं : । 4. A उपमहत्यु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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