________________
118]
महाकवि पुष्पवन्त विरचित महापुराण
तुझुप्पार रत्तउतार्याच इ सोयभावणिम्मोयणाई पेच्छिवि सीयाइ सदुक्ख रुण्ण पत्ता - आण्ण थिइ विहवत्तणइ एंतउं सीयइ जोइउं" || मेल्लिवि रामणगेहिणिहि हारु व खीरु पधाइ " ||23||
हारिणिहित्त । बाहुलकणोल्लई' लोयणाई । मंदोafterणीसरिउ थण्ण" |
[73. 23. 8
24
दुवई -- णिम्मलसीलसलिलभरवाहिणि णिच्छह' निययदेहएः ॥ जाणइ' तेण सीयदुद्धोहें जिणडिम' व रेहए |छ । तं कि सीयलु रहव असंगि विडंतु दुद्ध सिमिसिमइ अंगि । खगवइकंत पुणरवि पन्नुत्तु मा इच्छहि पुत्ति पुलत्थपुत्तु । हजं जणणि तुहारउ' जणणु एहु ता सीयहि रोमंचियउ देहु । तपश्वयगुणदिण्णछाइ सच्चउं तुहं मेरी माय माइ | सच्च दहमुह महु होइ बप्पु णासिवि 'तहु केरख दुब्वियप्पु । मई सहि रामहु पासि ताम कुडिमेल्लिकि जाइ ण जीउ जाम । जणी पबोल्लिउ रामरामि कुरु भो पुत्ति मज्झखामि । आहारें अंगु अगंगधामु अंगे होते पण मिल रामु ।
10
5
10
रक्त है। हा, विधाता ने तुम्हें दुःखों के भीतर डाल दिया। इस प्रकार शोकभाव के कारण जिनका आमोद (हर्ष ) चला गया है, ऐसे तथा वाष्प- कणों से आर्द्र नेत्रों, तथा मन्दोदरी के स्तनों से रिसते दूध को देखकर सीता देवी फूट-फूट कर रो पड़ी ।
पत्ता- वैधव्य के निकट होने पर आते हुए दूध को सीता देवी ने इस प्रकार देखा, मानो स्तन को छोड़ कर दूध मंदोदरी के हार के समान दौड़ा ।
(24)
निर्मल शील रूपी जल के भार की वाहिनी अपने ही शरीर में निस्पृह सीता उस शीतल दुग्ध प्रवाह से जिन प्रतिमा के समान शोभित थी।
राम का संगम न होने के कारण गिरता हुआ भी वह शीतल दूध शरीर पर रिम झिम ध्वनि कर रहा था ( शरीर की उष्णता के कारण ) । विद्याधर की पत्नी मंदोदरी ने पुनः कहाहे पुत्री तुम रावण को मत चाहो, मैं तुम्हारी माँ हूँ, और यह तुम्हारा पिता है । तब सीता का शरीर पुलकित हो उठा। वह बोली- जिसने पतिव्रत गुण को आश्रय दिया है, ऐसी हे आदरणीया, क्या सचमुच तू मेरी माँ है ? सचमुच दशमुख मेरा पिता होता है, तो उसके दुर्विकल्प को नष्ट कर तुम मुझे तब तक राम के पास भिजवा दो, जब तक जीव इस शरीर को छोड़ कर नहीं जाता । माता मंदोदरी बोली- हे मध्यक्षीण रामपत्नी, मेरी पुत्री, तुम भोजन करो, आहार से ही शरीर 7. AP बाबुकोल्लई । 8 A सुदुक्खरुण्णु; P सदुखु रुष्णु । 9 AP षष्णु। 10. P जोइयजं । 11. P पधाविरं । ( 24 ) 1. AP छ । 2 A जिया । 3. AP सित तेज दुद्धोहें। 3. A जिणएडिबिच । 4. A तुहारी ।