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________________ [117 73.23.7] महाका-पुरफयंस-विरइयज महापुराण दीसइ विद्ध सियतिमिरवंदुः जिह' गंगहि तिह वालहि चंदु । महिलंतह पर ण मुणति कि पि कामुय करंति दुरितु जंपि। जा णियघरु गउ लज्जिवि दसासु मयसुय ढुक्की जाणइहि पासु। अवलोइय सीयाएवि ताइ णं जलहिवेल ससहरकलाइ । 10 णं विउसमईइ 'सुकइत्तलील णस ज्जि ताइ सुविसुद्धसील। ओलक्खिय पयजुयलंछणेण जा चिरु घल्लिय णिदिय जणेण। मंजूसइ सहुँ कत्थइ वर्णति सरिसरसीयलसिंचियदियंति । धत्ता-हा अघडि' घडिज विहायएण इंदीवरदलणयणहु॥ ___ आणिय सा मेरी एह सुय कालरत्ति दहवयणहु ।। 2211 23 दुवई-जणणसुयाहिलासणियवइखयचिंतामउलियच्छिया । मेइणियलि दड त्ति णिवडिय मंदोयरि दुस्सहदुक्खमुच्छिया ॥छ।। पच्छाइय कामिणिकरयलेहि सिंचिय सुबंधसीयलजलेहि । विज्जिय पडिचमरुक्खेवरहि आसासिय चंदणलेवहिं। कह कह व देवि सज्जीव जाय भणु कासु अवच्छल होइ माय । मुहकुहरहु वियलिय महुर वाय हा सीय पुत्ति तुहं महुँ जि जाय। हा विलसि किं" विहिणा खलेण बोलीणु जम्मु दुक्कियफलेण। नहीं करते । रावण तब लज्जित हो कर अपने घर चला गया। मंदोदरी सीता देवी के पास पहुंची। उसने सीता देवी को इस तरह देखा मानो चन्द्रमा की कला ने समुद्र को देखा हो, मानो विद्वान् की मति ने सुकवित्व की लीला को देखा हो, मानो उसी ने (सुकवित्व की कोड़ा ने) सुविशुद्धशील व्यक्ति को देखा हो। दोनों पैरों के चिह्नों से उसने (मन्दोदरी ने) पहिचान लिया कि लोगों द्वारा निदित जिसे पहिले मंजूषा के साथ नदी सरोवर से शीतल और सिंचित बन के भीतर कहीं फेंक दिया था (यह वही है)। घत्ता-हा, विधाता ने अघटित को घटित कर दिया। उसने मेरी वह पुत्री ला दी जो नील कमल के समान नेत्र वाले रावण के लिए काल रात्रि के समान है। (23) पुत्री की अभिलाषा और अपने पति के विनाश की चिन्ता से जिसकी आँखें मुकुलित हैं, ऐसी मन्दोदरी असह्य दुःख से मूच्छित होकर धरती तल पर शीघ्र गिर पड़ी। बाद में कामिनियों के करतलों और सुगंधित शीतल जलों से सिंची जाने, प्रतिचमरों के उत्क्षेपों से हवा किए जाने पर और चंदन के लेपों से वह देवी 'किसी प्रकार से होश में आई। उसके मुखविवर से मधुर वाणी निकली-हे सीता पुत्री, तू मुझसे उत्पन्न हुई थी। हा, दुष्ट विधाता ने क्या किया ! दुष्कृत के फल से तुम्हारा जन्म बीत गया। पिता का चित्त तुम पर अनु. 2. A तिमिरचदु। 3: P omits जिह । 4. P सुकइत्तणेण । 5. P adds after this : णं जिणवरधम्म अहिंसगेण । 6, P adds after this :. | सुरसरीइ मय रहरलील । 1. P अयडिज।। (23) 1.A जगणि! 2. A omits दुस्सह । 3. AP विजिय। 4.Aण वच्छल । 5. AP विहिणा कि6. A योलोम्मि P बोली जम्मि।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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