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________________ 108] {73.13.3 महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण अंतरत्तपत्तीतंबु गुरुसिहरा लिंगियसूरबिनु । वेलापक्खल बिसट्टबु fire दरिसेवियणियंबु । इणिउरवहिरिदियंतु णच्चियजविखणिरसभावधंतु । करिमयकद्दमखुप्तहरिणु गुमुगुमियभमिरछच्चरणसरण | हितकालाहलकुडंब" खेल्लं तस रहस रहस सिलिंबु । उलउलफणिउलाढत्तसमरु चमरीमयचालियचारुचमरु | हरिकु जरकलहकलालबंतु' चयरत्तलित्तमोत्तियफुरंतु । दुमणियरगलियमहुवारिभु सबरीपरियंदणसुतडिंभु । ह्यमुकिलिकिचियसद्दरम् नहि पयई घत्ता - णावर णिउणइ महिकामिणिइ एइ समापरिछंदहु' | गिरिणियकरु उम्भिवि णियि तहि दाविय लंक सुरिदहु ||13|1 । 14 दुवई - परिहादारतोरणट्टालयधयजयलच्छ्रिसंगमा ॥ लंकारि दिट्टु हणुमंतें' मणिपायादुग्गमा ॥छ faत्यारे व हियलोयणाई । दीहतें बारह जोयणाई बत्तीस विसालई गोउराई मोत्तियमरगयघडियई घराइं । 5 10 जो लटकते हुए रक्त पत्र समूह से लाल था, जिसके गुरु शिखर पर सूर्य अवलंबित था, तटों के प्रस्खलन से जिसमें शंख टूट चुके थे, जिसके तट किन्नरियों के द्वारा सेवित थे, नागिनों के नूपुरों से जहाँ दिगंत बहरा था, जो नृत्य करती हुई यक्षिणियों के रस भाव से युक्त था, जहाँ गजों के मदजल की कीचड़ में हरिण निमग्न हो रहे थे, जो गुम-गुम करते भ्रमणशील भ्रमरों की शरण था, जिसमें कोल भीलों के कुटुम्ब घूम रहे थे, जिसमें शरभ के बच्चे हर्ष पूर्वक कीड़ा कर रहे थे, जिसमें नकुल कुल और नागकुल में युद्ध प्रारम्भ होने जा रहा था, जिसमें चमरीजहाँ मृगों के द्वारा सुन्दर चमर चलाए जा रहे थे, जो सिहों और गजों के युद्ध से रक्त रंजित था, रक्त में गिरते हुए मोती चमक रहे थे, जो वृक्षसमूह से झरते मधुजल से आर्द्र था। जिसमें भीलनियों के द्वारा आंदोलित बच्चे सो गए थे, जो अश्वों के सुरति शब्द से सुन्दर था, जो पर्वतों से दुर्गम और विद्याधरों के लिए गम्य था । पत्ता - मानो निपुण धरती रूपी कामिनी द्वारा गिरि रूपी अपना हाथ उठाकर उस पर स्थित लंका नगरी देवेन्द्र के लिए दिखाई जा रही हो कि स्वर्ग का प्रतिबिम्ब आ रहा है। (14) परिखाओं, द्वारों, तोरणों, नाट्य-गृहों और विजयलक्ष्मी का जिसमें संगम है, ऐसी मणियों के प्रकारों से दुर्गम लंका नगरी हनुमान् ने देखी । लम्बाई में जो बारह योजन थी, और विस्तार हृदय को आकर्षित करने वाली नौ योजन । उसमें बड़े-बड़े बत्तीस गोपुर थे। मोतियों और पन्नों से विजड़ित घर थे। जहाँ कर्पूर की धूल, धूल के रूप में व्याप्त थी जहाँ कल्पवृक्ष; वृक्ष थे, (13) 1. AP भूमि' | 2. AP हिंडतकोल 2 1 3. AP संछादयत रुदल सूरचिबु। 4. A "किलाल15. AP महाविभु । 6. AP मुहि । 7. पदि । (14) 1. AP हणवतें ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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