SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 73. 13. 2] महाकह- पुप्फयंत बिरइयज महापुराण तओ तेण जंतेण दिट्ठो समुद्दो जलुम्म्मणिममबोहित्थवंदो झोफत सिप्पीसमूहो दिसा हुक्कणक्कुग्गयंत करालो पवालंकुरुक्केर राहिल्लरूहो सुभीस असोस' असे संबुवासो सोसंग 'गत्तणालीढारखी" करिदो व्व गाढं गहीरं रसंतो गरिदो व्व धीरो" समज्जायवंतो गिरिदो व्व रेहंतमाणिक्कमोहो पत्ता - गंभीरु घोर आवत्तहरु लोलाइ जि आसंघिउ ' ॥ संसारु व परमजिणेसरिण मायरु हणुए लंघिउ " ||12|| 13 पधावंत कल्लोलमालारउद्दो । अथाहं भपब्भारसंकेतचंदो । हुक्खत्तमुत्तालो भाणुरोहो । चलुपिच्छपत्त्यवेला विसालो" । पगज्जतमज्जतमायंगजूहो । विडिंदु व्व पीयाह कियासो। अलंकारओ कूलकीत जक्खो । अहिंदो व पायालमूले विसंतो । रिसिदो व अंतोमलं णिग्गहंतो । सुरिदो व देवासिओ दिण्णसोहो । दुवई - खेयरिचरणधुरिणमसिणारुण रयणसिलायला मलो ॥ दीस हि तिकडु गिरि दरितरुवियसिय कुसुमपरिमलो । छ । । [107 10 5 उस समय उसने जाते हुए समुद्र को देखा जो दौड़ती हुई लहरमाला से भयंकर था । जहाज समूह जल में डूब उतरा रहे थे । अथाह जल के प्रवाह से चन्द्रमा आशंकित हो रहा था । मत्स्यों के आघात से सीपी समूह फूट रहे थे। आकाश में उछलते हुए मोती किरणों को रोक रहे थे । दिशाओं में प्राप्त मगरों से निकले हुए मध्य भाग से जो भयंकर था, जो ऊपर जाते और पीछे हटते हुए तटों से विशाल था, जिसका तट प्रवाल के अंकुरों के समूह से शोभित था, जिसमें गरजते हुए गज समूह डूब उतरा रहे थे । जो अत्यंत भीषण अशेष जल का घर था । जो faडेन्द्र ( कामुक ) की तरह, पीताधर (अधरों का पान करने वाला, घरा तक व्याप्त रहने वाला), किता ( दिशा आच्छादित करनेवाला, आशा को आच्छादित करनेवाला ) था । जिसने नदियों के साथ ऊंचाई के द्वारा नक्षत्रों को छू लिया था, जो अलंकृत था, जिसके तट पर यक्ष कीड़ाकर रहे थे, करीन्द्र के समान जो पातालभूल में प्रवेश कर रहा था, नरेंद्र के समान जो धीर और मर्यादा वाला था, ऋषीन्द्र की तरह जो अन्तर्मन को नाश करने वाला था, गिरीन्द्र की तरह जिसमें माणिक्य किरणें चमक रही थीं, जो सुरेन्द्र के समान देवाश्रित और शोभायुक्त था । छत्ता -- गंभीर भयंकर आवर्ती को धारण करने वाले समुद्र को हनुमान् ने उसी प्रकार पार कर लिया, जिस प्रकार परम जिनेश्वर संसार को पार कर लेते हैं । (13) वहाँ विद्याधरियों के चरणों की केशर से चिकने और लाल रत्नशिलातल की तरह स्वच्छ तथा जिसमें घाटियों के वृक्षों के विकसित कुसुमों का परिमल है ऐसा त्रिकूट पर्वत दिखाई दिया । 2. A सुप्फाल । 3. P चलपत्" । 4. असेसो । 5. AP रखो। 6. AP वीरो। 7. AP आसंघियत । 8. AP लंघियज ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy