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________________ 981 महाकषि पुष्पदन्त विरचित महापुराण {73. 2. 10 सीयाविरहहुयासचंडू णं तियसाणीकरघुसिणुपिंडु। 10 णं दिसकामिणिसिरि' रत्तु फुल्लु णं खयररायतणुरुहिरतल्लु । धत्ता-हयसीयर्ड' कयरण्णागमणु अइरत्तउ सउहाइयउ।।। दीहरपहरीणे राहविण रवि परवाह व जोइयउ ।।2।। मुगाई-- -पुखिकर ण तेत्थु णियपरियणु बालमरालगामिणो ।। कहि सा सीय भणसु भो लक्खण सइगणरयणसामिणी ।।छ।। तं णिसुणिवि भायरु कहइ एंब जावहिं तुई गउ मृगमगि देव । जावहिं हउं अच्छिउ सरवरंति तावहिं जि ण दिट्टी उबवणंति। विण्णवइ एंब भिच्चयण सव्व कंदइ उब्भियकरु गलियगत्रु । 5 एंवहिं जाणइ दीसइ जियंति जइ तो' तुहं पुण्णाहिउ ण भंति। तं णिसुणिवि मुच्छिउ पडिउ रामु जलसिंचिज उडिउ खामखाम् । सीयलु विसु विसु व ण संति जणइ हरियंदणु सिहिकुलु अंगु छगइ । में उन्नति को प्राप्त हो गया । जिसने पद्म सीय कमलों को शीत (राम और सीता) को विघटित कर दिया है, ऐसा दिनकर दूसरे दशमुख के समान शोभित होता है। मानो वह सीता देवी की विरह रूपी ज्वाला से प्रचण्ड है, मानो इन्द्राणी के हाथों में केशर का पिण्ड है, मानो दिशा रूपी कामिनी के सिर पर रक्तपुष्प है, मानो विद्याधर राजा के शरीर के रक्त का तालाब है। पत्ता लम्बे रास्ते से थके राघव ने सूर्य को रावण के समान देखा जो शीत दूर करने वाला (सीता का अपहरण करनेवाला) युद्ध के लिए आगमन करनेवाला, अत्यन्त रक्त (अनुरक्त) और सामने दौड़ता हुआ है। (3) दुबई-राम ने वहाँ अपने परिजनों से पूछा-हे लक्ष्मण, बताओ बाल-हंस के समान गतिवाली तथा सतीत्व गुणरूपी रत्नों की स्वामिनी वह सीता बताओ कहाँ है ? यह सुनकर भाई ने इस प्रकार कहा-हे देव, जब तुम हरिण के मार्ग पर गए थे, और जब मैं सरोवर में या, तब वह उपवन में दिखाई नहीं दी। समस्त भृत्यजन भी निवेदन करते हैं, और दोनों हाथ उठाकर गलितगर्व रुदन करते हैं कि यदि इस समय जानकी जीवित दिखाई देती हैं, तो तुम पुण्यशाली हो। इसमें भ्रांति नहीं। यह सुनकर राम मूछित होकर गिर पड़े। पानी छिड़कने पर अत्यन्त दुर्बल वह उठे । शीतल जल भी विष की तरह उन्हें शांति उत्पन्न नहीं करता, हरिचन्दन भी अग्निकुल की तरह शरीर को जलाता। कमल भी सूर्य के साथ अपनी 6. A दिसिकामिणिकररस्तु फल्लु । 7. AP हिय । ४. सविहायउ; P सनहाइउ । 9. P पहरेण । 10.AP परिवारु वि जोइ। (3) I. A सयंगुण । 2. AP गउ तुटु भिग 1 3. A सरवणंति । 4. Pत।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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