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________________ 72.6.8] 189 महाका-पुफ्फर्यत-विरापत महापुराणु वइरिमाणणि महणसत्तिणा भासियं कुसीलेणणं तिणा । दूरय पिमणपवणवेयय पंचवण्णमाणिक्कतेययं । आणियं मए हरिणपोययं कुणसु देवि कीलाविणोयये। ता सईइ अवलोइओ मओ णं सुसहो दुक्खसंचओ। विप्फुरंततणुकिरणमालओ विरसिहि व वित्थिण्णजालओ। विभियावलायाणमाणिया रयणिगमणचिंधेण भाणिया । घत्ता-पिए जरदिवसमरु अत्थंगउ दीसई रत्तउ ॥ जरजुण्णु बि तिजगि भणु अत्थहु को णासत्तउ ।।5।। 10 6 उशिऊण इंदियसमं सबिमाणं सिक्यिासमं । सव्वत्थ वि भई सियं तीए तेणं दसियं । बुद्ध कि पि णवं च णं णहु खलरइये चंचणं । तं धरणीयलरूढिया अमुणंती आरूढिया । उववणवासविणिग्गयं अप्पाणं हरिवरगयं । दहवयणेण विलासिणा रिउकित्तीयविलासिणा। तीए पुरओ दावियं वइयालियसहावियं । सा तुरियं लंकं णिया बम्मधणुगुणकण्णिया । पूर्ण इस प्रकार कथन किया-मन और पवन के समान वेग वाला, पाँच प्रकार के माणिक्यों से तेजस्वी हरिण का बच्चा दूर होते हुए भी मैं ले आया है। हे देवी, तुम क्रीडा-विनोद करो। तब सीता देवी ने उस हरिण को देखा। मानो असह्य दुःख का संचय हो। शरीर की विस्फुरित किरणमाला से युक्त यह विरह की ज्वाला की तरह विस्तीर्ण ज्वाला वाला था। राक्षस चिह्न धारण करने वाले रावण ने, विस्मित और मायापुरुष को नहीं जाननेवाली सीता से कहा : घत्ता हे प्रिये, बूढ़ा सूर्य भी अस्त होता हुआ रक्त दिखाई देता है। बताओ तीनों लोकों में जरा से जीर्ण होने पर भी कोन है जो अर्थ में आसक्त नहीं होता! (6) इन्द्रियों की थकान को दूर कर उसने शिविका के समान अपना विमान, जो सर्वत्र भद्र और श्रीसंपन्न था, सीता देवी को दिखाया। उसने समझा कि यह कोई अपूर्व विमान है, न कि कोई दुष्ट के द्वारा रचित प्रवंचना है। इस प्रकार, नहीं जानती हुई धरतीतल पर प्रसिद्ध यह उपवन वास के बाहर स्थित, अश्वों पर आरूढ़ उस विमान पर चढ़ गई। शत्रु की कीति से क्रीड़ा करने वाले विलासी रावण ने उसे सामने वैतालिकों के द्वारा वणित लंका दिखाई। कामदेव के धनुष की डोरी की कणिका उस सीता को वह लंका ले गया। सारसों के जोड़े द्वारा मान्य 8. A कुसी-लेण मंतिया । 9. दूरियं । 10. A भासिया। (6) 1. A भद्दासियं । 2. P तहु खल। 3. AP पुरउं । 4. P वम्मह ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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