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________________ 71. 13. 12] महाकष- पुष्कयंत विरइय महापुराण 13 उम्गयचंदणि उरगयचंदण उण्णयवंदणि कयजिणदण' । लोहियकंदइ सुहितरुकंदा' गुरुमाइंदइ जियमाइंदा । मोय करइमोया' फुल्लासोयइ वियलियसोया । लग्गपियाले पिपियाला ' कीलासेले धीर व सेला" । खगरावाले बहुरावाला सरकमलाले गुरुकमलाला । महयरगीए मणहरगी " छायसी ते सहुं सीयइ" | बहुपुहरुहि पुहइसमेया सिवए सिवढोइयरिउमेया । aftaarat कामियकामा लक्खगरामड़ लक्खणरामा । पंदववणि छुट्टा फेसरबरवहिणिड दिट्ठा । सउरेह की लार गहियणबल्ल फुल्ल मंजरिरय । घत्ता--कयकिसलयकण्णउ कुसुमरवण्णउ णं देवि वणवासिणिउ" ।। दुमसाहंदोलणि उववणकीलणि लग्गज रायविलासिणिउ ॥ 13 ॥ [75 10 (13) जिसमें चंदन वृक्ष उगे हुए हैं, ऐसे उस वन में राम और लक्ष्मण के हृदय में चंदन संलग्न है। जिसमें रक्त चंदन के वृक्ष उन्मत हैं, ऐसे वन में जिनेन्द्र की वंदना करते हैं। जिसमें रक्तकंद वृक्ष हैं, ऐसे वन में वे (राम और लक्ष्मण) मित्र रूपी वृक्षों के लिए मेघ के समान है। जिसमें प्रचुर आम वृक्ष हैं, ऐसे वन में जो चन्द्रमा और लक्ष्मी को जीतने वाले हैं। जिसमें कदली वृक्ष बढ़ रहे हैं, ऐसे बन में जो रति क्रीड़ा करने वाले हैं। जिसमें अशोक वृक्ष विकसित हैं, ऐसे जो शोक से रहित हैं, जिसमें अचार वृक्ष आकाश को छूते हैं, ऐसे उस वन में वे दोनों नित्य अपनी प्रियाओं से युक्त हैं। क्रीड़ा वन में जो पर्वत के समान धीर हैं, पक्षियों के कलरव से युक्त वन में जो गुरु के चरणों को चाहने वाले हैं, भ्रमरों के मधुर गीत वाले वन में, मधुर ग्रीवा (सीता के साथ) छाया से शीतल बन में (सीता के साथ ) प्रचुर महीवृक्षों वाले वन में, पृथ्वी ( लक्ष्मण की पत्नी का नाम) के साथ सुखद वन में वे पशुओं को शत्रुओं का मांस देने वाले हैं। जिसमें अमल और प्रचुर जल है ऐसे वन में जो वांछित अर्थों को भोगने वाले हैं; जो सारसों से रमणीय है, ऐसे नंदन वन में राम और लक्ष्मण शीघ्र प्रविष्ट हुए। अपने हाथों में नई पुष्प मंजरी धारण करने वाले और अन्तःपुर के साथ कोड़ा करने वाले वे दोनों रावण की बहिन द्वारा देख लिए गए। पत्ता - जिसने किसलयों के कर्ण फूल धारण कर रखे हैं, जो पुष्पों से ऐसी सुन्दर है मानो वनवासिनी देवी हो, वे राजवनिताएँ वृक्षों की शाखाओं के आन्दोलन वाली उपवन क्रीड़ा में रत हो गई ।। (13) 1. AP चंद | 2. AP बंदणे । 3. AP कंदए । 4. AP मायंदए। 5. AP मोयए । 6. P सोया। 7. P विवाले। 8. P वीर व T बीर वसेला वशा इसा ययोस्ती दशेलो। 9 AP गी। 10. A गया। 11 AP छाहीं 12. A सीया । 13. AP पर्यारक्कीमए । 14. A सेला छाहिय उदवण ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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