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परिचयास्मिका भूमिका गाव विजयने अपनी राजधानी श्रीविजय को सौंप दी और तपस्या कर मुक्ति प्राप्त की। स्वयंप्रभाने भी यही किया।
LIII-वासुपूज्यकी जीवनी के लिए तालिका देखिए।
LIV---यह सन्धि बलदेव, बासुदेव और प्रतिवापूदेवके दूसरे समूहका वर्णन करती है। विध्यपुरमें विन्ध्यशक्ति राज्य करता था। कनकपुरका रामा सुषेण उसका मित्र था । सुषेणके पास गुणमंजरी नामकी सुन्दर वेश्या पी। विन्ध्यशक्तिने उसके पास दूत भेजा कि वेश्या उसे दे दी जाये। सुषेणने प्रार्थना करा दी। दोनों मित्रोंमें युद्ध छिड़ गया। सूषेण पराजित हुआ। मित्रको पराजय सुनकर महापुरके वायुरप सांसारिक जीवनसे विरत हो गया। वह मुनि बन गया। सुषेणने भी मुनिव्रतकी ईक्षा ले ली। उसने मरते समय अपने वैरका बदला लेनेका निदान बांधा। वायुरथ और सुषेण वोनों प्राणत स्वर्गमें देव हुए । राजा विध्यशक्ति भी किसी एक स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। अगले जन्ममें बिन्ध्यशक्ति भोगवर्धनपुरके राजा श्रीधर और रानी श्रीमतीका पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम तारक था। समयको अवधिमें वह अर्घचक्रवर्ती बन गया । वायुरथ और सुषेण राजा ब्रह्मा एवं रानी सुभद्रा और उषादेवीके पुत्र हुए। अचल और द्विपृष्ठ उनके नाम थे जो बलदेव और वासुदेव थे। उनके पास श्रेष्ठ हामी था। तारक उस हार अपने पास रखना चाहता था और उसने विषष्ठके पास हाथो देनेके लिए दूत भेजा। अचलने ममा कर दिया। तारक और द्विषष्ठमें संघर्ष आ, जिसमें तारक मारा गया। द्विपष्ट अर्ध पक्रवर्ती बन गया। मृत्युके बाद तारक और द्विपष्ठ नरक गये। अपने भाईको मृत्यु देखकर अचलने जन-दीक्षा ग्रहण कर ली और उसने संसारसे मक्ति प्राप्त कर ली।
1.v.तेरहवें तीर्थकर विमलकी जीवनी के लिए तालिका देखिए ।
L.VI–पवित्रमी बिरेहके श्रीपुर में राजा नदिमित्र था। एक दिन उसे संसारकी क्षणभंगुरताका शान हो गया, सुखभोग छोड़कर उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। मृत्यु अनन्तर वन अनुत्तर विमानमें देव हुम।। धावस्ती में सुरेतु नामका राजा या । ससी नगरमें दूसरा राजा बली था। वे एक दिन जुआ खेले जिममें सुकेतु सब कुछ हार गया । निराशामें यह मुनि बन गया । परन्तु तपस्या करते हुए उसने यह निदान बाषा कि उसे पलोसे अगले जन्ममें बदला लेना चाहिए । मृत्यु के बाद सुकेतु लान्तव स्वर्गमें उत्पन्न हुर। बली भी स्वर्गमें देव उत्पन्न हुना। अपने अगले जम्मों में बली रहलपुरके राबा समरकेशरी और रानी सुन्दरीका पुष एला । उसको मधु कहा गया। वह प्रतिजापुदेव और अर्धचक्रवर्ती था। नन्दिमिव और सुकेतु द्वारावतीके राजा रुद्रकी पत्नियों सुभद्रा और पृथ्वी से उत्पन्न हए । उनके नाम थे धर्म (बलदेव) और स्वयम्भू (वासुदेव )। एक दिन स्वयम्भूने जब अपने महलको छतपर बैठा हुआ था, शहर के बाहर सैनिक-शिविरको ठहरा हुआ देखा। उसने मन्त्रीसे पूछा कि यह सेना किसकी है। मन्त्रीने उससे कहा कि सामन्त पाक्षिसोमने राजा मषुको उपहार भेजा है जिसमें हाथी-घोड़ा आदि है। स्वयम्भूने इसकी अनुमति नहीं दी। उसने शशिसोमको हरा दिया और उपहार छीन लिया। पह खबर मधुके कामों तक पहुँची। उसके बाद उसने स्वयम्मपर हमला बोल दिया। बादमें जो लड़ाई हुई उसमें स्वयम्भू ने मका काम तमाम कर दिया। यह अर्घचक्रवर्षी हो गया। राज्यका उपभोग करते हुए स्वयम्भू भी मरकर भरकमें गया । धर्मने मुनिवर्मकी दीक्षा ली और निर्माण प्राप्त किया।
LVI!-यह सन्धि संजयन्त, मेरु और मन्दरकी कहानीका वर्णन करती है। इममें से दो बादमें विमलबाहनके गणपर हए, जो तेरहवें तीर्थकर थे। दो और बादमी ये जो इस कहानीसे सम्बन्धित हैमन्त्री श्रीभूति और व्यापारी भवामित्र । इनमें से श्रीभृति सत्यघोषसे संलग्न है। पहले तीन व्यक्तियों के सात भवोंका कवि वर्णन करता है जब कि अन्तिम दोके कुछ ही भवोंमा वर्णन करता है। इस सन्धिके टिप्पणमें इनकी सूचीपर हिपात किया गया है जिससे पाठकोंको समझने में सुविधा होगी।