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________________ महापुराण [४१. १३. ८पूर्सहु मासा पक्खि पहाला चवदहमइ दिणि सिणतरुमूलइ । सडुवरि सतमि जेणुप्पाइज केवलणाणु तिलोस वि जोइन । धत्ता-सो मोहमहामहिरहालणु जिणवर जियपंचिंदिन ।। गिबाणहि सम पराइएण वाणवलेण पेवंदिर ॥१३॥ शुणइ सुरिंदु सरर गुण समणे तुई जि' देउ कि देवागमणें । सुहुँ जि अणंगु अणंगहु वंकहि अणुदिणु णिशालाइ पर छहि । तुई सरुयु कि तुद आहरणे तुहूं सुयंधु कि तुइ सबलहणे । सुहं अकामु किं तुह णारियणे तुई गिद्दु किं तुह घरसयणे । सुद्धिवंतु तुहूं कि तुह पहाणे दिव्वासहु किं तुह परिहाणे । तुझु ण वहरु पा भउ उ पहरणु तुझुण रहण कीलाविहरणु । तुई जि सोम्मु सोम्में किं किजा तुह छविहरू रवि काई भणिजह । गुणणिहि तुहूं तुह किं किर थोत्तें तो वि थुणइ जणवउ सहियतें । हरिकरिगिरिजलणि हिहिं समाणउ पई किं भणेइ वराउ अयाणउ । पत्ता-ससिसूरहं सरिसर पई परम भत्तिइ कइयणु अक्खाइ ।। गयणयलहु अवरु वि तुइ गुणहं पान को वि किं पेक्नइ ॥१४॥ किया, पूस माहके शुक्लपक्षकी चतुर्दशीके दिन असन वृक्षके तलमागमें सातवें पुनर्वसु नक्षत्रमें उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और उन्होंने त्रिलोकको देख लिया। - पत्ता-मोहरूपी महावृक्षके लिए आगो समान, पांचों इन्द्रियोंको जीतनेवाले जिनवरको देवोंके साथ आकर इन्द्रने वन्दना की ॥१३॥ देवेन्द्र स्तुति करता है, अपने मनसे उनके गुणोंका स्मरण करता है कि तुम्ही देव हो, देवागमनसे क्या ? तुम स्वयं काम हो, तुम कामको क्यों चाहोगे? तुम स्वयं ही सुन्दर हो, तुम्हें बाभरणोंसे क्या तुम स्वयं सुगन्ध हो, तुम्हें विलेपनसे क्या? तुम स्वयं अकाम हो, तुम्हें नारीजनसे क्या? आप स्वयं निद्रारहित हैं, आपको उत्तम शयनसे क्या ? आप स्वयं शुद्धिसे युक्त हैं, आपको स्नानसे क्या? आप दिगम्बर हैं, आपको वस्त्रोंसे क्या ? आपका न शत्रु है, न भय है और न प्रहरण है, आपमें न रति है और न क्रीडाविहार है। आप स्वयं सौम्य हैं, आपको सोम (चन्द्रमा) से क्या? कान्तिसे आहत सूर्यको कान्तिमान क्यों कहा जाता है ? आप गुणोंकी निधि हैं, आपको स्तोत्रोंसे क्या? फिर भी लोग, अपने मनसे तुम्हारी स्तुति करते हैं, बेचारे अज्ञानी वे आपको अश्व, गज, गिरि और जलनिधिके समान क्यों बताते हैं। पत्ता-कविजन केवल भक्तिसे आपको शशि और सूर्यके समान बताते हैं लेकिन एक आकाश और दूसरे तुम्हारे गुणोंका पार कौन पा सका है ? ॥१४॥ ४.A P परसह । ५. A T पहिल्लइ । ६. AP सिणितक । ७. A पंचेंदियत । ८. A T वालवलेण; P वणवाण । ९. A पर्ववियन । १४.१.वि । २. A PE मणंगु जो अंगण इहि । ३.A TERB P सुरूत। ४. A P अणि । ५. A सोमु सोमि किं। ६.A मणमि । ७. A गुणहं सामि पार को लक्खा P गुणहं सामिय पार
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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