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________________ ६६ ५ १० महापुराण [ ४१.८. १ ८ कयविहिपरियम्मं छिण्णदुकम्मजम्मं सेई सिरिअरहंतं तम्मि औरोहिउं तं । faat दसदिसासुं से भिंगारणीरं बहुदसणविसाले कक्खणक्खत्तमाले पविहरमराणीसेवियं देवबंद जलियकविलवालं भासुरालं करालं पयपयउरब्भं भाविणीभावियासं जलय पडलकालं निद्धणीलं 'व सेलं करवेलइयदंडे "छाहिसं सत्तसंत भेलगरलमालाका रोमं तुरंतं जुवइजणि कामं साहिरामं करामो करिमेयैरणिविट्टं हारणीहारतेयं वरुणममरसारं माणसे संभरामो तरुपहरणपाणि 'वाइसंदिण्णरायं कुण सुरवरिंदो सिद्धमं ताहियारं ||१|| चलियचमरलीले संठियं पीलुबाले । विवि से सेवाहरामोमरिंदं ||२|| दिसि पसरिजालं धूम चिंघेण णीलं । जिवणविसेसे बाहरामो हुयासं ||३|| महिसमुहसमीरुड्डीण जीमूयमालं । जिणuraणविसेसे वाहरामो कर्यतं ||४|| अरुणणयणछोह रिछमावाहयं तं । जिष्णहवणविसेसे मेरियं वाहरामो ||५|| धुर्वे धवल ओहं कामिणीए समेयं । touraणविसेसे सायरं वाहरामो ||६|| सुरहिपरिमलंगं मणिणीजायरायं । ८ जिन्होंने विधाता के परिकर्मको किया है, और पापकर्म और जन्मका नाश कर दिया है, ऐसे श्री अरहन्तको उसपर आरोहित कर दिया। दसों दिशाओंसे श्वेत भृंगारपात्रोंका जल गिरता है; सुरवरेन्द्र सिद्धमन्त्रोंका अभिचार करता है । बहुतसे दांतोंसे विशाल, वरत्रारूपी नक्षत्रमालासे युक्त, चलते हुए चमरोंकी लीला धारण करनेवाले बाल ऐरावत गजपर उन्हें रख दिया । जिन भगवान् के अभिषेक विशेष में मैं, ( कवि पुष्पदन्त ) वज्रको धारण करनेवाले, इन्द्राणीके द्वारा सेवित, देवोंके द्वारा वन्दनीय, अमरेन्द्रको बुलाता हूँ। जिसके प्रज्वलित कपिल केश हैं, भास्वर भयंकर, दिशाओं में जिसका जाल फैला हुआ है, धूमचिह्नोंसे नीला, अपने पैरसे मेषको आहत करनेवाला, अपनी पत्नी के द्वारा जिसका मुख देखा गया है, ऐसे अग्निदेवको मैं जिनेन्द्र के अभिषेकविशेष में बुलाता हूँ । जो मेघपटलके समान श्याम है, शैलके समान स्निग्ध और नीला है, जिसके महिषके मुख के पवनसे मेघमाला उढ़ रही है, जिसके हाथमें दण्ड झुका हुआ है, अपनी भार्या, छाया में जिसका चित्त आसक है, ऐसे यमको मैं जिनके अभिषेक विशेष में बुलाता हूँ । भ्रमर और गरलमालाके समान जिसके रोम काले हैं, जो लाल आंखोंकी कान्तिवाला है, रीछपर सवारी करता है, युवतीजन में जो काम उत्पन्न करता है, ऐसे नैऋत्यको में अनुरागयुक्त करता हूँ और जिनेन्द्र के अभिषेक - विशेषमें उसे बुलाता हूँ। जो गजाकार मगरपर अधिष्ठित हैं, जो हार-नीहारकी तरह स्वच्छ हैं, हिलती हुई धवल ध्वज-समूहसे युक्त हैं, कामिनीसे सहित हैं, ऐसे अमरोंमें श्रेष्ठ वरुणकी मैं याद करता हूँ और जिनेन्द्र के अभिषेक विशेष में उन्हें सादर बुलाता हूँ। वृक्ष ही जिसके प्रहरण और हाथ हैं, वातप्रेमी मृगीमें जिसका अनुराग है, सुरभिपरिमल जिसका शरीर है, ० o ० ८. १. A कुक्कम् । २. A सयसिरिं । ३ AP अरिहंतं । ४. A आराहिऊणं । ५. P खिवइ । ६. A ● ममराणीसंजुयं देवदेवं; P॰ ममरेहि सेवियं देवविदं । ७. P अग्गिवालं पहालं । ८. P° पिद्धणीला लिसे लं । ९. Aवडइयं । १०. A छाहिसंसत्तगत्तं; Pछाहित्तवतं । ११. P कसणभसलमालाकारी । १२. P साहिरामो। १३. A मयरणिविद्धं । १४. A P घुयधवलं । कामिणिजाय । १५. A P वायसं । १६. P
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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