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महापुराण
[ ३९.१५, १
तावेक्कु परायउ दंचपाणि कासायचीरधरु महरवाणि । जिणव व णिवारियभवधिहरु । कुंडलियणोलभमरडलपिहरु। सोत्तरियफुरियजण्णोक्योर स्वेण गुणेण वि दुतीउ । सो मतिहिं गहियखणेहि महिउ कुलबभणु भणिघि नृवस्तुं कहि । ता भासइ लद्धावसरु विप्पु को पुत्त एत्थु किर कवणु बप्पु । संसारु असारु णिरायराय कि सासय मषणहि अन्भछाय । जिह तस्वेजिहिं परगम्मु होइ तिह गरु णारिहि अप्पउँ ण वेइ । जीहोषयहिं जगमारणेहिं । हिहि उन्भवकारणेहि ।
संसारिय सयल सणेह लेंति केसा इव बंधणजोग्ग होति । १. मोहे बद्धा भैवि संसरति पुणु पुणु हति पुणु पुणु मरंति ।
पत्ता-महु विसई पुस्तकलतई एम''भणंतु जि णिज्जइ ।।
"सुहं माणइ धम्मु ण याणइ जगु खयरक्खें खज्जइ ॥१५||
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तब इतने में गेरुए वस्त्र धारण किये हुए मीठी वाणी बोलनेवाला एक दण्डो साधु वहाँ माया। जो जिनवरकी तरह भव्योंके कष्टोंको दूर करनेवाला था, जिसके भ्रमरकुलके समान नीले बाल कुण्वलित थे, जो उत्तरीय वस्त्रके साथ यज्ञोपवीत धारण किये हुए था। वह रूप और गुण में अद्वितीय था । तपके लिए नियम ग्रहण करनेवाले मन्त्रियोंने उसका सम्मान किया और कुलीन ब्राह्मण समारकर राजासे कहा । तन अवसर मिलनेपर ब्राह्मण बोला-"यहाँ कौन पुत्र है, और कोन आप है? मनुष्योंके राजराज, यह संसार असार है। क्या हम मेघोंकी छायाको शाश्वत मानते हो? जिस प्रकार तरु लताओंके परवश हो जाता है, उसो प्रकार मनुष्य नारियों के कारण अपनेको नहीं जान पाता। जगका नाश करनेवाली जीवकी अवस्थाओं, बच्चों और बच्चोंके बन्मकारणोंके द्वारा सभी संसारी जीव स्नेह ग्रहण करते हैं, और केशोंके समान बन्धनके योग्य हो जाते हैं। भोहसे बंधकर संसारमें परिभ्रमण करते हैं। फिर-फिर जन्म ग्रहण करते हैं और फिर-फिर मृत्युको प्राप्त होते हैं।
पत्ता-'मेरा धन, मेरे पुत्र-कलत्र' इस प्रकार कहता हुआ वह ले जाया जाता है, फिर भी वह सुख मानता है, धर्म नहीं जानता। और इस प्रकार यह जग यमरूपी राक्षसके द्वारा खा लिया जाता है ।।१५।।
१५. १. A चीक पह। २. A P°विहरू । ३. A अदुई P अदुईउ । ४.AP हिवस्स । ५.A
भुभव। ६.A मोह बवा । ७. P अगि। ८. P संभाति । ९. A मरंति; P भवति । १०.A हति । ११. A एणंतु । १२. सुफ मागह।