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________________ ५२१ -LXV ] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद 15 2 कण्णाहरणकरणरणलाई सेना उस युद्ध में व्यस्त थी, जो विवाह में दो गयो करमा स्वयंप्रभा अपहरणके लिए हो रहा था 1 12-13 ये दो पंक्तियों, दो सेनाओंकी तुलना प्रेम करते हुए जोड़ेसे करती है। मिहुई - मिथुनानि — प्रेमक्रीडामें लगे हुए । 16. 2 सिरिरिमस्सु — जो कि ऊपर वर्णित है LI में 16-95, प्रजापति राजा के मन्त्रो के रूपमें 25 माहवलवणा अर्थात् हरिमस्सु । 17. 145 णं अष्टुमउ चंदु-- - चन्द्रमा आठवें स्थानगर हो तो ज्योतिषशास्त्रमें मृत्युको सूचना देता है । 19. 36 गोलंजणपदेवी सुएण - मध्वग्रीवके द्वारा। दूसरे दृष्टिकोणके लिए देखिए मृच्छकटिक VI. 9. "कस्टुमो दिणअरो कस्स चउत्यो आ बट्टए चेदो" इसमें चतुर्थ स्थानका चन्द्रमा मृत्युका सूचक है । 20. 218 भोमूह-उक्लिउभयसे मुक्त ! 146 स्विकामिणी-प्रेमिकाके द्वारा अर्थात् स्त्रीभ्टगाल शिवा । 16 मोल्लषणु - मूल्य 21, या वापसी । 24. 156 कुलालचक्कु -- कुम्हारका चक्र । जब अश्वग्रीधका चक्र त्रिपृष्टको आहत नहीं कर सका, और वह उसके हाथमें ठहर गया। अश्वप्रोच बोला- यह कुम्हारके चक्र के समान है जो युद्धमें व्यर्थ है । यद्यपि त्रिपुष्ठ और उसके पक्षने इसका बहुत कुछ मूल्य का अश्वग्रोवने त्रिपृष्ठकी यह कहकर निन्दा की कि feart तिलतुष खण्डको सूख मिटानेवाला कीमती खाद्य पदार्थ समझकर महत्व थे उकता है, परन्तु दूसरे लोग ऐसा नहीं सोचते । 25. 9 कामिणिकारणि कलहसमत्तो - कामिनी के लिए युद्धमें व्यस्त ! LIII 5. 5b अबंधवो सरराम्भ दिष्णपोमिणीरई—सूर्य जो कि कमलका मित्र है और झोलमें कमलके पौषको आनन्द देता है । 6, 85 तित्यणाह संखम्मि रिक्बर- चौबीसवें नक्षत्रपर अर्थात् शततारिका । 5a अण्ण पासि ण सत्यविही करवर सुण- वह शास्त्रका अध्ययन नहीं करता, मेरे अध्यापकसे वह स्वयं अध्ययन करता है। तीर्थंकर स्वयं प्रकाशित हैं, और उन्हें किसी दूसरे गुरुकी आवश्यकता नहीं। 13. 8. 1a सस्यभिसह - शततारिकाके साथ । LIV 1. 14-15 पंक्तियोंका अर्थ है - यदि मैं (कवि ) गुणमंजरीके मुखकी तुलना चन्द्रमासे करता है तो इसमें मेरी कवित्व शक्तिका प्रदर्शन नहीं होगा। मुझे कवि नहीं कहा जाना चाहिए। क्योंकि गुणमंजरीका मुख गन्दा या काला नहीं है, जैसा कि मृगचिल चन्द्रमण्डलपर है। उसकी आकृतिमें चन्द्रमाकी तरह घट और वक्रता है । 3. 2 इहु फल्लोलविहु-कषि बहता है कि विन्ध्यशक्ति और सुवेगको मित्रता इतनी घनिष्ठ और पक्की थी कि उनमें मेरा भेद करना असम्भव है । क्योंकि समुद्रसे उसकी लहरोंको दूर कौन कर सकता है ? दार्शनिकों द्वारा समुद्र और उनकी लहरोंका एकात्म्य, एक स्वीकृत सत्य है । ६६
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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