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________________ -11] अंगरेजी टिप्पणियों का हिन्दी अनुवार 3.35 गुण देव भवदेवई ईस-अनन्त जिनवर गणधरों और जम्मसे देव होनेवाले इन्द्रादिकके ईश्वर है। 5. 9 ता णजद इत्यादि-शहरमें स्वर्णवर्षा होने के कारण लोगोंको रात और दिन के बीच भेद करना कठिन था 1 इसलिए लोग उस समयको दिन का समय मानते थे जब सरोवरमें कमल खिलते थे। यह और इसके बादकी दो सन्धियां प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ट, प्रथम बलदेव (विजय) और प्रथम वासुदेव अश्वग्रोवकी कहानीका वर्णन करती है, जो जन पौराणिक परम्परा के अनुसार है। पाठक त्रिपृष्ठ और विजयको मित्रता और त्रिपृष्ठ तथा अश्वग्रोव को शत्रुताको पृष्ठभूमि समझ सकें, इसके लिए कवि तीनोंके दो पूर्वभवोंके जीवन का वर्णन करता है। 1. 5a गोउलपयधाराघायपहिह-जहाँपर यात्री गायोंके दूधको जी-मर पी सकते हैं। 11a जाणी-जनी, जो यहाँ व्यक्तिवाचक संज्ञा है। 15 खलपित्तसणेहदुष्ट आदमी माष मित्रता थोड़े समयके लिए रहती है। 2. 5 णिग्गेसह ण वाय-शब्द बाहर नहीं निकलेंगे। महा किम शब्द तथा 76 में मराठी निघणेके समतुल्य है जिसकी व्युत्पत्ति निगममे की जा सकती है। 3. 56 तरSwims-मूल 'तर' तैरना मराठ में सुरक्षित है, इसो अर्थमें प्राकृतमें एक और मूल शब्द तर है जिप्रका अर्थ समर्ध या योग्य होता है। ___4. 16 वणुस्साहिलासं होना चाहिए वत्साहिलासं, उद्यान रखने की अभिलाषा । वणुस्स सभी पाण्डुलिपियों में मिलता है इसलिए इसे रहने दिया है अथवा क्या हम वण + उत्सुक + अभिलासं ले सकते है, जिसका अर्थ होगा वन रखनेकी तीय इच्छा। 12b तायाउ राहणिज्जो-प्रादमें आदर करने योग्य । ( पिताको मृत्यु के बाद ), तुम भी मेरे पिताकी तरह समान आदर पाने योग्य हो । 5. 13 दुगु भणेवि--यह कहते हुए या सोचते हुए कि वृक्ष दुर्गके समान है ( दुग्ग)। वारि-शत्रु । 8. 6 छाउ (छादितः )-पराजित च्यिा। 9. 10 तुम हसियह करमि समाण--में बराबर कर दूंगा। मैं उस हसीका बदला दूंगा जो मेरा मजाक उड़ाती है और अपमान करती है । 10. 8 अवरु-विशाखनन्दी । LI 1. 64 जायासीषणुतणु-वे दोनों (विजय और त्रिपुष्ठ) 80 धनुष बराबर ऊंचे हो गये । ५० बिहि गलहिणं पुणिमवासर--पूर्णिमाके दिनके समान जिसके एक ओर भाषा उजला पक्ष है और दूसरी ओर अंधेरा पक्ष है । मो विजय इलदेवके समान है, जो गोरे है, और त्रिपृष्ठ वासुदेव को श्याम वर्णके है।। 2, 11a.b हलहरु दामोयह-यहाँ कृपया याद रखिए कि बलदेव और वासुदेवका उल्लेख उनके विभिन्न पर्यायवाची नामोंसे होगा। जैसे सीरि, हलो, लंगलाहर, सीराउह, मलदेवके नाम है। दामोदर, मार, श्रीवत्स, अनन्त, सिरिरमणीस, लच्छीवा ( लक्ष्मीपति ), दानवारि, दानववैरिन्, विट्टरसव, विस्ससेण वासुदेवका; इसी प्रकार अश्वग्रीवा सल्लेख हयग्गोव, हयफण्ठ, तुरंगगलके रूपमें होगा।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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