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-६७.१४. १९
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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एथंतरए सिरिसुंदरय। खेचचिचित्ते भारहखेत्ते। कासीदेसे सजणवासे। बहुगुणरासी
वाणारासी। भणयहम्मा णयरी रम्मा। पडिभडमल्लो अग्गिसिहिरुलो। सत्तिसहाओ तस्सि राओ। सिसुईसगई अवराय है। " पच्चक्खा कयरयसोक्खा। अलिकेसघई थी फेसषई। षीया सरसा पियघरसरसा। विस्सुयणामो जो चिररामो। कयजिणसेवो ओयर देवो। यको गन्भे रवि व सियम्भ। लामो गीत रमियरईप केसवईए। अवरो लूओ वम्महरूओ। घत्ता-लीलागामिणो णाइ मरालया ।।
णवजोवणसिरि पत्ता बालया॥१४॥
इसी बीच श्रीसे सुन्दर तथा क्षेत्रोंसे विचित्र भारत क्षेत्रके सज्जनोंसे बसे हुए काशी देशमें बनेक गुणोंको खान वाराणसी नगरी है जो उन्नत प्रासादोंवाली और सुन्दर है। उसमें शत्रुयोद्धाओं के लिए मल्ल तथा जिसकी सहायक शक्ति है ऐसा अग्निशिख नामका राजा था। उसकी शिशहंसके समान गमनवाली अपराजिता नामकी पल्ली थी जो प्रत्यक्ष रतिसुख करनेवाली थी। दूसरी भ्रमरके समान बालोंवाली केशवती नामकी पत्नी थी। दूसरी अत्यन्त सरस और पतिघररूपी सरोवरको लक्ष्मी थी। जो पहला विश्रुतनाम राम था और जिसने जिनकी सेवा की है ऐसा वह देव मामा तथा गर्भमें उसी प्रकार स्थित हो गया जिस प्रकार श्वेतकमलमें सूर्य। वह प्रथम सती अपराजिता स्त्रीसे उत्पन्न हुआ। जिसने रतिकी तरह रमण किया है ऐसी केशवतीसे दूसरा (विराम) कामदेवके रूपमें उत्पन्न हुआ।
घत्ता-हंसोंके समान लोलापूर्वक चलनेवाले ये दोनों बालक यौवनश्रीको प्राप्त हुए ॥१४॥ १४. १. A गिरिसुंदरए । २. P क्षेसि विषिते । ३. A गुणवासी । ४. नग्गयहामा । ५. AP पाओ ।