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महापुराण
[६७.१३.१
ससहरधवलहरे धरिद्धे. इह भरहे साकेयपसि। मंदरधीरो वीरो राया पुत्वा रामविरामा जाया । एए फिर दुम्ममइरिका पिसुणमंतिवयणेण विमुका । लग्गा तेज हु पिडणो चित्ते भाउँ वि णिहियर जुबराइचे। लक्लियतच्चे रविनयजीवे गुरुणो सिरिसिषगुत्तसमीवे । धम्मणाहतित्ये हयमारा से पावइया रायकुमारा। णो समियं णियचित् कुद्ध अणुजाएण णियाणं पर। अइ वयवेशिहलं पाषामो तो तं खलमति णिहणामो। एम भरंतो णिग्गर्यपाणो अणसणेण जाओ गिम्वाणो । पढमे कप्पे पिहलेविमाणे जेहो विहु तत्थेय विमाणे । पिसुणेमहंतो ता संसारे अणुइषिऊणं दुक्खपयारे । उत्तरसेडीमंदिरणामे
पयरे कामिणिकामियकासे । जाओ धरणीषा खरिदो बलिषलणासो णाम लिंदो। पत्ता-पंडा राइको असिणा दंडिया॥
वेण तिखंडिया मेंइणि मंडिया ॥१३॥
इस भारतवर्ष में धनसे समुख चन्द्रमाके समान धवल गृहवाले अयोध्या नगरमें मन्दराचलके समान धीर वीर नामका राजा था। उसके राम-विराम नामके पुत्र थे। वे दुर्भातसे प्रचुर थे। दुष्ट मन्त्रीके कहने में बाकर आजाद हो गये। वे दोनों पिताके चित्तको अच्छे नहीं लगे, इसलिए उसने छोटे भाईको युवराजपदपर स्थापित कर दिया। कामदेवको नष्ट करनेवाले वे राजकुमार, धर्मनाथके तीर्घकालमें जिन्होंने तरखोंको जान लिया है, जीवोंकी रक्षा की है ऐसे श्री शिवगुप्त मुनिके पास प्रवजित हो गये। छोटे भाई (विराम) ने अपने व चित्तको शान्त नहीं किया और निदान बांध लिया कि यदि मैं व्रतरूपो लताका फल प्राप्त करता हूँ तो मैं उस दुष्ट मन्त्रीको मारूंगा। इस प्रकार स्मरण करता हुआ वह अनशनसे मृत्युको प्राप्त हुआ और प्रथम स्वर्गके विशाल विमानमें देव हुमा। बड़ा भाई भी वहीं उत्पन्न हुआ। वह दुष्ट मन्त्री भी संसारमें तरहतरहके दुःखोंका अनुभव कर विजया पर्वतको उत्तर श्रेणी में जिसमें कामिनियोंके द्वारा काम पाहा जाता है, 'ऐसे मन्दरपुर नगरमें बलवानोंके बलका नाश करनेवाला बलोन्द्र नामका विद्याधर राजा हुवा।
पत्ता-प्रचण्ड राजाओंको उसने तलवारसे दण्डित किया। उसने तीन खण्ड धरतीको अलंकृत किया ॥१३॥
१२.१.P सायए पसिद्धे। २. A रामषिराम विजाया। ३. A माऊणिहियो। ४. A सविखपित।
५. A तो। ६. AP पाणो । ७. AP विवाणे । ८. P तत्पेस सभाणे; K recorde: तत्पेश समाणे इतिमा पूजामहो । ९. P पिसुगु । १० गरियो।