SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -६७. ११.२] महाकवि पुष्पवन्त विरचित भवा--दुमहसतुमयई लावहि हयकलि ॥ जेचिय ते वेतिय केवलिं ||२|| १० सय बाईसह णवसय दोणि सहासई मणजाई सतारह पोषण्णसहास सावचषस्तु अहोणचं सुर असं सम्मोि भवसमुपाविष पंचसहास जुओ संमे चिरयण: भरणीरिक्खे मुकओ विििरयह विरिस्त्रीसहूं । कुलियणयनिसः । समपणास समीर ! विरास | सावईहिं सं तिष्णवं । संबोहिषि । पसु स मासेसधियजीविए । रिसिहिं पाहू तमचत्तश्रो । फग्गुणि पिंच मिय | अमपुरधिकओ | घचा- हर भयंकरं भविष्यमदुई ॥ मल्लिसुणीस देव सुहं महं ॥ १०॥ ११ मल्लिवित्थताणे कयपडिववई बुषणसुसुहेयरणं हि चण्टिक । ४८३ १० ५ १० पता - पापका नाश करनेवाले अवधिज्ञानी दो हजार दो सो थे । वहाँ जितने थे उतने केवलज्ञानी थे ॥१॥ १० वादी मुनि चौदह सौ थे। कुसित नयोंका ध्वंस करनेवाले विक्रिया- ऋद्धिके धारक मुति दो हजार तो सी थे। तुम मन:पर्ययज्ञानी एक हजार सात सौ कहो। अपना गृहवास छोड़नेवाली पचपन हजार गायिकाएँ थीं, श्रावक एक लाख थे और श्रादिकाएं तिगुनी अर्थात् तीन लाख पौं । अस्य देवोंको मोहमुक्त कर संख्यात विर्य चोंको सम्बोधित कर संसाररूपी समुद्रका तट प्राप्त कर जीवनका एक माह शेष रहनेपर पांच हजार मुनियोंके साथ अन्धकार रहित स्वामी शिखरसे आकाशको छूनेवाले सम्मेद शिखरपर फागुन शुक्ला सप्तमीके दिन भरणी नक्षत्र में मुक्त हुए। वे आठवीं धरतीपर पहुँच गये। ● ११. १. Aसुहणणी: P सूबामण 1 घता है, मस्लि बिनेश्वर, तुम भयंकर भवविश्रमके दुलको दूर करो और मुझे सुख दो ॥ १०॥ ११ मल्लिनाथको तीर्थ परम्परा में जिसमें शत्रुपक्षका वध किया गया है, जो बुधजनोंके कानोंके ४. AP हि हु जेतिय तेतिय । १०.१.२. A मुक्कसवास; P मुक्कसवासहं । ३. 4 संमोहिषि । ४ AP मम्ससेसि विविए । ५.AP विहि। ६. AP मई सुई । ०
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy