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________________ ४८२ [६७.८.१ वित पाखाणयं मोत्तं भतं पाणयं । बिहि दिवसेहिं गएहिं सो दसविसिषहपसरियजसो। पिण्णेहो णीसंगयो मिहिलाए भिक्खं गओ। णंदिसेणवरराणा दिणं भत्तंजोईणा। मुत्तं राणुणिषाहणं संजमजतासावर्ण। पत्ता-पुणु दिक्खावणे सुरहियपरिमले । थक्कु असोयहो तलि धरणीयले ॥८॥ दिणि इथे विच्छिण्णए भिषणे मिच्छादुपणए । हुच देवाण वि देवो लद्धोखाश्यभावओ। रिसिविजाइरसंसिओ इंदपहिंदणमंसिओ। समवसामिासीणधो किसिलो। जीवमजीपं पास संवरणिज्जरणं तवं । बंधं मोस्खं भासए लोयं धम्मविसेसए। थवा वस्स णिमुणियामुणी अट्टवीस जाया गणी। सयई पंचपण्णासई पुग्वधराह णिरासई। एक्कुपातीससहास सिक्खुयाई मलणासई। हो गये । प्रत्याख्यानावरण आदि छोड़नेके लिए भात और पानी छोड़ दिया। दो दिन हो जानेपर दसों दिशाओंमें जिनका यश फैला हमा है ऐसे निर्नेह और अनासंग वह मिथिला नगरीमें भिक्षाके लिए गये। नन्दिषेण श्रेष्ठ सजाने योगीको बाहार दिया। शरीरका निर्वाह करनेवाला और संयमयात्राका सापक बाहार उन्होंने ग्रहण कर लिया। पता-फिर सुरभित परागवाले दीक्षावनमें वह अशोक वृक्षके नीचे धरणीतलपर स्थित हो गये || छठा (पंचभक्त) दिन बीतनपर (पारणाके बाद) मिथ्या दुर्नय नष्ट होनेपर वह देवोंके देव हो गये। उन्होंने क्षायिकभाव प्राप्त कर लिया। ऋषि विद्याधरों द्वारा प्रशंसित इन्द्र और प्रतीन्द्र के द्वारा प्रणम्य समवसरणमें बैठे हुए शत्रु और स्वजनमैं समान वह जीव-अजीव-यास्रव-संवर-निर्जरा-तपबन्ध और मोक्षका कपन करते हैं, लोकको धर्मविशेषमें स्थापित करते हैं। जिन्होंने विव्यध्वनि सुनी है ऐसे उनके अट्ठाईस गणधर हुए। आशारहित पूर्वागके धारी पांच सौ पचास थे। मानका माश करनेवाले शिक्षक उनतीस हजार थे। ___३. P घेतुं । ४. A मोतं । ५. P राणो । ६. A भिक्खं; P भक्वं । ७, A जोइणो । १. १. Padd after this: पूसकिण्डदीयए उमओ, पंचमु णाणुप्पण्णभो । २. A अरिप्तयणे; P बरिसयणा । ३ सिक्खुबाह; P भिक्खयाह ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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