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________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित ता णिगय तणय पसार भणिवि जमदंड भुथवर धुणिवि । धरधरणक्खम उद्घद्धसोंड मयगल मयंजलगिल्लगंड । धाइय जुवाण मुहमुकराव णं पलयजलय गज्जणसहोष । धत्ता-पविदंडे खणरुपडे फाडिउ खणि स्त्रोणीयलु ॥ णरसारहिं रायकुमारहिं देवहुं दावि मुयबलु ॥११॥ १० णियविरंपवाह पिहपहु मुयंति करिकरहगलियमयमलु घुयति । परिभमियवारिविम्मम ममंति कमलोयरमयरंदई धर्मति । परिमलमिलियालिहि गुमुगुमंति देणयवजालोलिहिं सिमिसिमंति। सविसई विसिविषेरई पइसरति फणिफुकारिहिं परोसरंति। गिरिकंदर परि सर सरि भरति दिसणहयलु बलु जलु जलु करंति । ५ वत्तुंगतरंगहि पाहि मिलंति विर्यडयरसिलायल पक्खलति । कच्छरमच्छोह समुच्छलति हंसावलि कलरव कलयलंति । पविउलजलवलयहि पलवलंति कप्रिय गंगाणखेलखलंति । वलइयर वाइ कइलासु कम्ब बेसाइ पमस मुयंगु जेम्व । मार्ग ( आना ) नष्ट हो जाये।" तब 'जैसी आज्ञा' कहकर वे पुत्र यमदण्डके समान प्रचण्ड अपने मजदण्ड ठोकते हुए निकल पड़े, जैसे वे पृथ्वी धारण करने में सक्षम, अपनी सूर ऊपर किये हुए, मदसे आई गण्डस्थलवाले गह। अपने मुंहो शब्द करते हुए वे युवक ऐसे दौड़े, मानो गर्जनस्वभाववाले प्रलयमेष हों। ___ पत्ता-विजलीकी तरह प्रचण्ड वपदण्डसे उन्होंने एक क्षणमें पृथ्वीतलको विदीर्ण कर दिया, और इस प्रकार मनुष्यश्रेष्ठ उन राजकुमारोंने देवोंके लिए अपना बाहुबल दिखा दिया ॥११॥ १२ अपने चिर प्रवाहके विशाल मार्गको छोड़ती हुई, हाथोके गण्डस्थलोंसे गलित मजलको धोती हई, घूमते जलोंसे विभ्रमको धारण करतो हुई, कमलोदरोंसे मकरन्दका वमन करती हई, सौरभसे मिले हुए भ्रमरोंके द्वारा गुनगुनाती हुई, बनोंको दावाग्नियोंकी ज्वालाओंसे सिमसिमाती हुई, सांपोंके विषेले बिलोंमें प्रवेश करती हुई, नागोंके फुत्कारोंसे थोड़ा फैलती हुई, पहारको गफाओं, घाटियों, सरोवरों, नदियोंको भरती हुई, दिशाओं, आकाशतल, स्थल और जलको जलमय बनाती हुई, ऊंची तरंगोंसे आकाशसे मिलती हुई, विकट शिलातलोंका प्रक्षालन करसी हुई, फछओं और मत्स्योंके समूहोंको उछालती हुई, हंसावलियोंका कलरव करतीहाई, विशाल जलविलयोंसे चिल-बिल करती हुई, और खल-खल करती हुई गंगा नदी आकर्षित की गयी, उसके द्वारा केलास पर्वत उसी प्रकार घेर दिया गया, जिस प्रकार देण्याके द्वारा प्रमत्त लम्पट घेर लिया जाता है। ५. जयदई । ६. A वरपरणुक्सम तद्वायसर । ७. A जलमयगिल्ल । ८. A राय । ९. A सहाय । १०. A परियटित गंगाजलु; P परियलित गंगाजलु। १२. १. Afचत पवाइपिहम । २. A°मयजल वंति: P"मयजल पुर्यति। ३. P मुर्यति । ४.A P ववव। ५. A विसधिवरई। ६.A विसि । ७. Pमल पल । ८.Aविबलयलसिलार्याल। ९. सलहलति ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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