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________________ ३५ ५ १० महापुराण जाणिव देवे कय गमण सिद्धि । विदिश कमलिणिवणासु । सहसाई सहि तरुह ताम | पाहुं तुहारी पायसेन । सरहुँ महारिष रण एवं पि । लीलाइ समाणहुँ काजु तं पि । बिसेष्पिणु वृत्तं राणरण । आरुहिषि तुरंगम मत्तहत्थि । मा जंप वयणई चफलाई । भंगाह मंडलाई घणरिद्वहं ॥ सुट् ठु दुलाई सिद्धई ॥ १०॥ ल अज्जि विण लहइ काललद्धि गड चट्टि णिलणासु अत्थाणि परिट्टिङ छुडु जिजाम आयाई भई जीर्य देव दे देहि र आसु किं पि मंदर महिर जेड जंपि तं णिणिव लक्समाणरण आएस कारणु किं पित्थि अजहु महू रिद्धिहि फलाई ता- विग्गह पेस मधु एक [ ३९.१०. ३ अह जइ सुर्य दक्खेवि अज्जु देवेण जाई केसरेण लंबियघंटाचा मरयाई वरसिहर उस वि ताह जिन्हें पास खलमाण वहं मन्गु ११ तो कर महार धम्भकज्जु । कारावियाई भरसरेण । केटासु पिकं चणमया । परिरक्ख पजह जिणहराई | ति विरय तहसिलसलिलदुग्गु । ५ वह देवमुनि यह कहता है, फिर भी वह पृथ्वीनाथ सगर प्रतिबुद्ध नहीं हुआ । लो वह आज भी atroofer नहीं पाता । यह जानकर उस देवने गमनसिद्धि की ( अर्थात् वह वहाँसे चला गया ) 1 राजा सगर अपने निवासके लिए चला गया, मानो भ्रपर अपने कमलिनो निवासके लिए चल दिया हो । जैसे ही वह अपने दरबार में बैठा, वैसे ही उसने अपने साठ हजार पुत्रोंको देखा। आये हुए उन्होंने कहा - "हे देव ! आपकी जय हो, हम आपके चरणोंकी सेवा प्रकट करते हैं। आप शीघ्र हो कोई आदेश दीजिए, यदि युद्ध में सुमेरुपर्वत के बराबर भी शत्रु होगा, तो भी हम अपना पैर नहीं हटायेंगे? इस कार्य को भी खेल-खेल में सम्मानित करेंगे ।" यह सुनकर इन्द्रके समान हँसते हुए राजा सगरने कहा, "आदेश देनेके लिए कोई कारण नहीं है ? तुम लोग अश्वों और मतवाले हाथियोंपर चढ़कर मेरे वैभव के फलोंको चखी। चंचल वचनों का प्रयोग मत करो। " पत्ता- क्यों सकते हो और आज्ञा मांगते हो। मेरे द्वारा मुक्त एक चकसे ही दुःसाध्य और धन-सम्पन्न मण्डल अच्छी तरह जीत लिये गये ॥१०॥ ११ अथवा यदि तुम्हें आज अपना सुपुत्रत्व दिखाना है, तो हमारा एक धर्मकार्य करो । चक्रवर्ती राजा भरतेश्वरने जिनमन्दिरोंका जो निर्माण करवाया था, तुम फैलास पर्वत जाकर, जिनमें घण्टा, चमर और ध्वज अवलम्बित हैं ऐसे स्वर्णमय और श्रेष्ठ शिखरवाले चौबीसों जिनमन्दिरों की परिरक्षा करो। तुम वृक्षों, चट्टानों और जलोंका दुर्ग बनाओ जिससे दुष्ट मनुष्यों का २. A 2 अज्जवि 1 ३. P कय देखें जाणसिद्धि । ४ A P जीव । ५. AP जेवड्ड । ६. सं सुणिषि । ७. उत्तर ८. P लग्गह। ११. १. A संयत । २. AP दबखच । ३. वर । ४. A जिम ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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