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-६६.६.५
भाविपुला वि
सपदित कियक रंगुली सहयरेहिं सह लछिमाणपो दाणसंडवं खणि पइटुओ तेहि तस्स विऊण गोरयं आसणे निविट्टेस्स पिम्मलं
कोसलं पुरं पत्तओ बली । 'बेघोस महिरियदिताणणो । तं मिईि दिओ । पापमपखालणं कथं । नीलद खरं पुणो जलं ।
घता - पुणु अहियारिएहिं ढोएप्पिणु मिट्ठल भोयणु ॥ दसणुकेत दक्ख]लिड जायड ओयणु ॥ ५ ॥
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जं दंत जाय णवकलमसित्थ णु णु भणत करफुरियखभा परमेसह ते ण गणइ केव जो दस पुंजु तं कूरु जाउ उद्वषिदि चप्रय सब विषितेहि प परसुधारि आसपुर संपत्तु भीमु ससाणेण हरिवाहणेण आवंतु दिट्टु बार्ले अणेण
मिड रणभेरसमस्थ | अतधम्मेण लग्ग | बाळहू कंठीरच वणि गोसाच जेव । तं जणं नियजसणिहाच । गणापि भड ग़लियगव्य | भो हरणाह रिच जीवहारि । संणिसुणिवि निम्गव ईदराभु । संक्षि लहु स साहणेण । सुदेव तुलिय हरिसियमणेणे
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लाल वस्त्र से शोभित है, जिसकी अंगुलियाँ दर्भमुद्रिकासे अंकित हैं, ऐसा वह वीर धुरन्धर और बलवान् अयोध्या नगरी पहुँचा । लक्ष्मीको माननेवाला वह अपने सहचरोंके साथ वेदोंके घोषसे दिशामुखों को बहरा बनाता हुआ एक क्षण में दानमण्डप में प्रविष्ट हुआ। वहां नियुक्त मनुष्योंने उसे देखा। उन्होंने उसे प्रणाम कर उसके चरणकमलोंका धूलरहित प्रशासन किया और मासनपर बैठे हुए उसे निर्मल हरा दर्भखण्ड ( दूब खण्ड ) और जल दिया ।
धत्ता - फिर अधिकारियोंने मीठा भोजन देकर उसे दांतोंका समूह दिखाया, वह भात
बन गया ।।५।।
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जब दाँत नये चावलों की तरह सीज गये तो रणभार में समर्थ योद्धा उठे। जिनके हाथ में तलवारें चमक रही हैं, ऐसे वे मारो मारो कहते हुए क्षात्रधर्मको ताक पर रखते हुए वे बालकके पीछे लग गये। लेकिन वह परमेश्वर उन्हें उसी प्रकार कुछ नहीं समझता कि जिस प्रकार सिंह नमें शृंगालोको कुछ नहीं समझता । ओ वह दाँतसमूह भात हो गया था उसे वह अपने यशसमूहके समान देखता है। उठकर उसने दृष्टिसे उन्हें हटा दिया। गलितगर्व सभी योद्धा भागकर चले गये । उन्होंने फरसा धारण करनेवाले अपने स्वामोसे निवेदन किया, "हे पृथ्वीनाथ, शत्रु जीवका हरण करनेवाला है । भयंकर आवेगपुरुष है।" यह सुनकर इन्द्रराम निकला। अपने प्रसा
४, AP गमिकग । ५. A आसणोपविटुस्स । ६
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६. १. A भड समत्य २P बलतषम्मेण । ३ AP हि कुरु । ४, परिवि । ५. A adds after this: बोल्लिउ पणि ।