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________________ महापुराण चकियकरयलु पायपउनु हकारिउ मामें सो सुभेउमु । विहवत्तणदुक्खोहरियछाय अपणहि दिणि पुच्छिय तेण माय । संडिल्लु मामु तुहुँ जणणि माइ पर ताउ ण पिच्छमि महुरवाइ । विणु ताई पुत्तु ण होइ जेण महु संसउ बइ कह हि तेण । पत्ता-भेणु इ कासु सुख महियलि मंडणउ पहिल्ला ॥ ___भणु किं कारणेण तुह हथि गस्थि कईंल्ल ॥१॥ तावम्महि अंसुजलोल्लियाई णयणई णं कमल ई फुल्लियाई । जाणिवि णियतणयहु सणिय सत्ति पडिलबह सहसमुयरायपत्ति। सुणि सुय जो सुव्वद परसुरामु ते मारिव तुह पित अतुलथामु । ताबटुवीसधणुदतुंग व कामकृवि रणि अहंगु। तं णिसुणिवि णं जमरायदून आरुट्ट अरिहि सिहिचुरुलिभूउ | चूडामणिकिरणालिहियमेहि तावेत्तहि रेणुयतणयगेहि। दिउ पारायणकमकमलभसलु संपत्तल केहि मि णिमित्तकुसलु । सो पुच्छिउ तेण कयायरेण युद्धरियसैधरधरगुरुभरेण । सहसयरसिकप्पललूरणेण णियजणणिमणोरहपूरेणेण । वजका आधात हो, जिसका हाथ चक्रसे अंकित है, जिसके पैरों में कारन है, ऐसे उस कुमारको मामा शाण्डिल्यने सुभौम कहकर पुकारा। वैधव्य के दुःखसे जिसके शरीरको कान्ति नष्ट हो गयो है ऐसी अपनी मासे उसने एक दिन पूछा, "हे मा, शाण्डिल्य मामा है और तुम जननी हो, परन्तु मधुर बोलनेवाले पिताको मैं नहीं देखता हूँ। परन्तु विना पिताके पुत्र नहीं हो सकता, इसीलिए मेरा सन्देह बढ़ रहा है आप बताइए। पत्ता-कहो, मैं किसका पुत्र हूँ ? पृथ्वीतलपर में किसका पहला मण्डन हूँ ? बतानो किस कारण तुम्हारे हायमें कड़ा नहीं है" ||१|| numarner तब माताके नेत्र अनुजलसे आई हो उठे, मानो खिले हुए कमल हों । अपने पुत्रकी शक्तिको जानते हुए सहस्रबाहुको पत्नी प्रत्युत्तर देती है, "हे पुत्र सुनो, जो परशुराम कहा जाता है उसने अतुलशक्तिवाले तुम्हारे पिताका वध किया है। जो अट्ठाईस धनुष प्रमाण ऊँचे थे, 'रंगमें स्वर्णकान्तिके समान ओर युद्ध में अभग्न थे।" यह सुनकर आगको ज्वाला बनकर वह शत्रुपर इस प्रकार ऋद हो गया, मानो यमराजका दूस हो। जिसके शिखरमणिको किरणोंसे मेघ अंकित है, ऐसे रेणुकाके पुत्रके घर नारायणके चरणकमलोंका भ्रमर एक निमित्तशास्त्री ब्राह्मण आया। जिसने पर्वत सहित धरतीका गुरुभार उठाया है, ऐसे सहस्रबाहुके सिररूपी कमलको काटनेवाले तथा अपनी माके मनोरथोंको पूरा करनेवाले उसने आदर करते हुए पूछा ७. A सुभूमु। ८. A°दुपखें हरिय। ९. A भणु कासु सुउ हर्च महिलहि मंडण । १०. AP कडल्ली २. १. AP ता सम्महि । २. AP रिउहि । ३. A कह व । ४. A सघरगुरुभायरेण । ५. पुरएप ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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