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________________ ४३२ -६४. ६.७] महाकवि पुष्पदन्त बिरचित थिउ गम्भि भडार परधामि । सोहरहु राउ अहमिंदु देख वणिजइ कि णिवाणहेन । वणवाहिं घल्जियकन्चुरेहि थुध इदपांडदादि सुराई ।। गइ संतिणाहि मलदोसहीणि पल्लोवमद्धि सायरि वि खीणि । वईसाहमासि पडिययहि दियहि अग्गेयजोइ णरणाह पियहि । जायंट जिणु फयतइलोकाखोड सुरवइ संपत्तु ससुरवरोहु । णिस सुरगिरिसिरु सुरणाहणाहु णाणत्तयसलिलवरंभवाह । पत्ता-सिंचिवि खीरघडेहि जिणु अंचित णवसयवत्तहिं ॥ इंदै रुंदाणंवयरु जोइस दस सयणेत्तहिं ।। ५ ॥ बंदिवि पुणु णामु केहि वि कुंथु लंघेप्पिणु दीहरु पक्षणपंथु । पुरु आविवि जणणिहि दिण्णु बालु गा सग्गहु हरि सुरचकवालु । पोढसभावि थिउ कणयवण्णु कंतीइ पुण्णचंदु व पसण्णु । पहु पंचतीसघणुतुंगकाउ सिरिलंछणु जयदुंदुहिणिणाउ । तेवीससहसवरिसह सयाई सत्तेव सपण्णासई गयाइं । चरणंभोरणमियामरासु णियबालकलीलाइ तासु । पुणु तेत्तिउ मंडलियत्तण तेत्तिउ जि चकपरियतणेण । दसमीके दिन मानवोंको सुख देनेवाले कार्तिक नक्षत्रमें निशाके अन्तमें आदरणीय यह सिंहरथ राजा अहमेन्द्र देव प्रवरधाम और गर्भमें आकर स्थित हो गया। उसके निर्वाणके कारणका क्या वर्णन किया जाये ? जिन्होंने स्वर्णको वर्षा की है ऐसे वनवासियों, इन्द्र-प्रतीन्द्रों आदि देवोंके द्वारा उनकी स्तुति की गयो। मलदोषसे रहित शान्तिनाथ तीर्थकरके बाद लक्ष्मी उत्पन्न करनेवाला भाषा पल्प समय बीतनेपर वैशाख शुक्ल प्रतिपदाके दिन राजाओंको प्रिय आग्नेय योगमें त्रिलोकको क्षोभ उत्पन्न करनेवाले जिनका जन्म हुआ। सुरवर-समूहके साथ इन्द्र भी उपस्थित हुआ। देवेन्द्रोंके नाथ और ज्ञानरूपी सलिलके श्रेष्ठ मेघ उनको सुमेरु पर्वतपर ले जाया गया । पत्ता-वहीं क्षीरके बड़ोंसे अभिषेक कर फिर उनको नवकमलोंसे अंचित किया । इन्द्रने विशाल आनन्द उत्पन्न करनेवाले उन्हें हजार नेत्रोंसे देखा ।।५।। फिर वन्दना कर, उनका नाम कुन्थु कहकर, लम्बे पवन-पथको पार कर, नगरमें बाकर धौर बालक माको देकर देवसमूहका पालक इन्द्र चला गया। स्वर्ण रंगवाले वह प्रौढ़ताको प्राप्त हुए। कान्तिमें वह पूर्णचन्द्र के समान प्रसन्न थे। स्वामी पैंतीस धनुष प्रमाण कंचे थे। वह श्रीलांछन और जय-जय दुन्दुभि निनादसे युक्त थे। जिनके चरण-कमलोंमें देव नमित हैं, ऐसे उनके नृपयाल क्रीड़ामें तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष बीत गये। फिर इतने ही वर्ष अर्थात् तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष राज्य करते हुए और इतने ही वर्ष ( २३७५०) चक्रवर्तित्वमें, २. AP कित्ति । ३. A बइसाहमासि पडिवयह दियहिः P पइसाहमासि सेयपडिवयहि दियहि । ४, AP जायत जिणि तेलोपकाखोहु । ६. १. AP करिवि । २. A सुरु पक्कवालु । ३. AP विय' ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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