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________________ महापुराणं [ ३९. ५.९. असि चम्मै छत्तु गहवेइ पुरोहु करि हरि कागणि मणि सेण्णणाहु ! वरजुवइ थइ बरकुलिसदं परपहरणगणणिद्दलैणचंड। चोदह रयणाई महियलु छखंड महाकालु कालु पिंगलु"पयंड। दुई पोम संख दुइ अव दिव्चु माणव इय णव णिहिति सक्छ । पत्ता-महि हिंडिवि समरु “समोडिवि दुजणे दुट्ट दुसाहिय ।। जलयलवाणहयर णरवइ देव वि तेण पसाहिय ॥५॥ वरवसुमइ असिणा बसि करेवि णीसेसणरेसई कप्पु लेवि । आवेपिणु कार पाहिणिवास एप्तिय संपय भुषणयलि कास। जिंब भरहहु तिवै सयरहु जि होइ तं वण्णहुँ ण वि सक्कंति जोइ । णामेण च उम्मुहु देउ संतु उप्पण्णउं वहु केबलु अणंतु । आसीणु भहार ३ णिलइ जेत्थु संजायउ देवागमणु तेत्थु ।। किंकरकरवालकरालधारू अण्णहिं दिणि सुंदर सपरिवार । गउ वंदणहत्तिइ सयर राव अवयरिउ सहि जि मणिके उ देउ । अवलोइ जिणपयणिहियचित्त बोझाविउ तियो परममित्त । भो देव महाबल णिचियप्प ओलक्खहि कि मई णाहिं बप्प । चकरल प्राप्त हुआ । असि, चर्म, छत्र, गहत, पुरोहित, हाथी, अश्व, काकणीमणि, सेनापति, वरकामिनी, स्थपति, शत्रुओं के शस्त्रसमूहको नष्ट करनेवाला श्रेष्ठ बजदण्ड, ये चौदह रत्न और छह खण्ड धरती महाकाल, काल, पिंगल, पप, महापप, प्रचण्ड दो और शंख (शंख, महाशंख), और मानव, ये नौ निधियो उसको सब कुछ देती हों। घत्ता-धरतोपर घूमकर युद्ध कर उसने दुःसाध्य दुष्ट, दुर्जन, जलस्थलपति, विद्याधर, राजा और देव सभीको सिद्ध कर लिया ॥५॥ ६ अपनी श्रेष्ठ तलवारसे श्रेष्ठ घरतीको जीतकर, समस्त राजाओंसे कर लेकर और आकर उसने अयोध्या में निवास किया। भुवनतलमें इतनो सम्पति किसकी है? जिस प्रकार भरतके पास सम्पत्ति यी, उतनी ही सगर चक्रवतोंकी थी, योगी मो उसका वर्णन नहीं कर सकता। चतुर्मुख नामक एक मुनिको अनन्त केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। वह भादरणीय मुनि जिस स्थानपर विराजमान थे, वहाँ देवोंका आगमन हुआ। दूसरे दिन अनुचर और भयंकर तलवार धारण करनेवाला मह राजा सगर अपने परिवार के साथ वन्दनाभकिके लिए गया। वहींपर मणिकेतु देव भी पाया । उस देवने जिनके चरणों में अपना मन लगाये हुए अपने मित्र सगरको देखा। उसने कहा-“हे विकल्पहीन महाबल देव ! हे सुमट, क्या तुम मुझे नहीं पहचानते । पृथ्वीपुरमें Y. AP चम्मु । ५. A P गिहवा । ६.AP हरि करि । ७. Komits पया। 4.A P दद। ९. A °णिहाणपंड; P°शिवहणपंडु । १०. A पठदह । ११. A P पछु । १२. A तह पोम संप्स सप्प सम्वु । १३. P पवर मन्नु । १४. AP सुरिवि । १५. P दुग्नस । ६.१.AP जिम । २. A P सिम । ३. P बंदणभत्तिा । ४. AP सपरराव । ५. P अवलोय ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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