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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
यंति सणसणेहबंधु जो पावइ अग्गइ मणुयजम्भु विणि वि ते दिवि निवसति जांव कोसलपुर राज समुह बिज्ञउ विजया णामें त अत्थि घरिणि सो तिय समसिहराव लहसि
far दोहिं म पहिबोहण णिबंधु । तहु अमर समास परधम्मु । काले महाबलु ढलि तांब जसु घरि घोसिज्वर णिश्वविजय । परमेसरि णाई अणंगधरणि । तहि केर गम्भणिवासि बसि ।
पत्ता - हरिकंधरु बहुलक्खणधरु छणससहर मंडलमुहु ॥ कच्छवि णाव णवरवि जाणिवठ जणणि तजुरुहु ||४||
संगामसमुहरउद्दमय केसरि दरदीसंतदादु काले गलेतें जाउ पोदु गुता जोड़कर भूणाई मंदरभित्ति व उत्तंगिमाई तहु विकुमारको ललिय तेत्तिय जि महामंडलषइन्तु गहुं तय सुकियसारु
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कोक कुमार तारण सयरु | दुव्वारवे रिसंगाम सोडु | पलक्कु व तिब्यारूदु । चरद्धया सरासणाई | छज्जइ गोरी से विथ रमाइ । goat अट्ठारहलक्ख गलिय । पात पत्थिवपय पयन्तु । उप्पण्णव चक्कु फुरंतधा ।
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कि जो पहले मनुष्य जन्म प्राप्त करेगा, देव उसे परमधर्मका कथन करेगा। इस प्रकार जब वे दोनों स्वर्ग में निवास कर रहे थे तब समयके साथ महाबल देव स्वर्गसे च्युत हुआ । कोशलपुर में राजा समुद्रविजय था। उसके घर में नित्य विजय घोषित की जाती थी, उसको विजया नामकी गृहिणी थी। वह परमेश्वरी जैसे कामदेवकी भूमि थी। वह देव स्वर्गशिखर से च्युत होकर, उसके गर्भनिवास में आकर बस गया ।
३. A सूर्याणि । ४. A P पवरु घम्भु । ५.१.२. P उत्तंगिमाइ । ३. P कुमारलीलाइ ।
धत्ता - सिह के समान कन्धोंवाले, अनेक लक्षणों के धारक और पूर्णिमाके चन्द्र के समान मुखवाले उस बालकको माताने जन्म दिया, जैसे स्वर्णछविने नवसूर्यको जन्म दिया हो ||४||
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संग्रामरूपी समुद्र के भयंकर मगर उस कुमारको पिताने सगर कहकर पुकारा । दुर्वार रियोंके संग्राम में समर्थ वह मानो सिंह था कि जिसकी थोड़ी-थोड़ी डाढ़े दिखाई दे रही थीं । समय बीतने पर वह प्रौढ़ हो गया। वह प्रलय सूर्यके समान अपने तीव्र प्रतापसे प्रसिद्ध था । उसका शरीर योद्धाओंके हाथोंके आभूषण स्वरूप साढ़े चार सौ धनुष के बराबर था। ऊंचाईमें यह मन्दराचलकी भित्तिके समान था । लक्ष्मी और सरस्वती से सेवित वह शोभित था । पत्नीकी सुन्दर क्रीड़ा में अठारह लाख पूर्व वर्ष बीत गये, और जब इतने हो वर्ष महामण्डलाध्यक्ष के रूप में पार्थिवप्रजाका प्रयत्नपूर्वक पालन करते हुए हो गये तो उसे पुण्यका सारभूत चमकती बारवाला