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महापुराण
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गत मंदरपुर जिणु तथता विउ पियमित्तै राएं पाराविच । महि विहरंतु मुणियसत्थत्थउ सोलह परिसई थिउ छम्मरथउ । संतु दंतु भयवंतु सरिसिगणु पुणु आयउ तं सहसंबयवणु । घत्ता-पववत्तहु णंदावत्तहु तरुहि मूलि आसीणउ ।।।
खंत्रियदुहु सुरदिसिसमुह रिउमित्त वि समाणउ ॥ ६ ।।
पूसहु मासहु. सोक्खणिवासहु। दहमदिणंतरि
सियपक्खंतरि। छट्टववासे विय लियपासे। दरसंझाइ
जोइ वियालइ। कम्भुणिवाइट खणि उत्पाइन। केवलदसणु दोस विहसणु। ध्रु सिवमाणणु केवलजाणणु । कयमयविलएं कुरुकुलतिलएं। कासगोते सुयसुइसोतें। पत्तसं कित्तणु सिरिअरुहसणु। दहविह सुविह अवर वि ययविह। सुर सोलह विह भूसणयरसिह।
गुणगणवत्तं पंकयणेत्तं । समताभाषसे परिपूर्ण और तसे सन्तप्त जिनवर मन्दरपुर नगर गये। प्रियमित्र राजाने उन्हें आहार कराया। मात कर लिया है शास्त्रार्थको जिन्होंने ऐसे वह धरतोपर बिहार करते हुए सोलह वर्षे तक छप्रस्थभावमें स्थित रहे । शान्त, दांत, ज्ञानवान वह ऋषिगणके साथ फिरसे उसी सहस्राम्रवनमें आये।
धत्ता-नये पत्तोंवाले नन्दावर्त वृक्षके नीचे बैठे हुए, दुःखोंका नाश करनेवाले पूर्वदिशामें मुख किये हुए, शत्रु तथा मित्रमें समान बह-||६||
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पौष शुक्ल दशमीके दिन, बन्धनोंको काटनेवाले छठे उपवासके द्वारा, थोड़ी-थोड़ी सध्या होनेपर उन्होंने कर्मों का नाश कर दिया और एक क्षणमें दोषोंको नष्ट करनेवाला केवलज्ञान और शिवको माननेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। जिन्होंने मदका विलय किया है, ऐसे कुरुकुलके तिलक, कश्यप गोत्रीय, पवित्र शास्त्रों के प्रवाहवाले उन्होंने श्री अरहन्त होनेका कीर्तन प्राप्त कर लिया । इस प्रकारके, आठ प्रकारके और भी पांच प्रकारके, सोलह प्रकारके देव, (भूषण६. १. जिणतवताविउ २. A विरहंतु । ३. AP णवपतच । ४. A सुरदिसिमुह । ७. १. A नियंतरि । २. AP डायवियाला। ३. A कम्मणिपाईन। ४. A qध; P पूर्व । ५. AP
कयमलविलए । ६. AP गणवंतें; AP add after this: ससहरवते । ७. APणेत्तें।