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________________ -६३. ६.८) महाकवि पुष्पदन्त विरचित रज करतह देतहु णियधणु. गलिय समासहास सेत्तिय पुणु । जइयहं तइयई पुण्णविसेसे आयई दिदुई शेण णरेस। चक्कु छत्तु अति पहरणसालहि संभूयडे पंड वि मुषिसालहि । कागणि मणि पाणई सिरिहरि थवा पुरोधमूवह गयउरि। कण्णा गय तुरंग लगभूहरि णय णिहि जलणिहिणइसंगमधरि । छक्खड वि महिवीलु पसाहिवि वितर सुर विजाइर साहिवि । पणवीसरसहस महि पालिषि वप्पणयलि णियबयणु णिहालिवि । घाता-णिवेइउ णाहु पैसाइड लोयंतिएहिं पषोहिउ ॥ अवमत्तत्र इंदै सित्तउ रयणाहरणहिं सोहि ॥५॥ थिउ सम्वत्थसिद्धि सिवियासणि जाइवि तहिला सहसंबयवणि । सिलहि णिसणे उत्तरषरणे कयपलियः दीहरणयणे । जेट्ठहु मासहु सतिमिरपक्वह दिवसि चचदसि भरणीरिक्खइ । अवरण्डा णिक्खवणु करते छववासिएण गुणवते । उप्पाइस मणपजउ देखें कि ण होइ भणु संजमभायें । जो घम्मिलभारु आलुचित सो सुरणाहें कुसुमे अंषिउ । घलिउ णवर खीरमयरालय पकाउहुपमुहहिं तकाल । संजमु णिवसहसें पडिवण्ण बीयइ वासरि समसंपण्णव । कर दी और देवेन्द्रने स्वयं पट्ट बांधा। राज्य करते हुए और अपना धन देते हुए फिर जब उनके चतने ही अर्थात् पवीस हजार वर्ष बीत गये, तो पुण्य विशेषसे उस राजाने इन चीजोंको देखा ( प्राप्त हुई ) सुविशाल आयुधशालामें चक्र-छत्र और तलवार तथा दण्डन उत्पन्न हुए। श्रीगृहमें कागणि मणि उत्पन्न हुई। हस्तिनागपुरमें स्थपति, पुरोहित और चभूपति । कन्या, गज, दुरंग विजयाई पर्वतपर उत्पन्न हुए ! जलनिधि और नदीके संगमस्थलपर नवनिधियां प्रास हुई। छह खण्ड धरतीको सिद्ध कर व्यन्तर, विद्याधरों और देवोंको साधकर पचीस हजार वर्षों तक घरतीका पालन कर { एक दिन) दर्पणतलमें अपना मुख देखकर पत्ता-प्रसन्नताको प्राप्त देव विरक्त हो उठे। लोकान्तिक देवोंने उन्हें सम्बोधित किया। रस्नाभरणोंसे शोभित और अप्रमत्त उनका इन्द्रने अभिषेक किया ॥५॥ वह सर्वार्थसिद्धि नामक शिविकापर आरूढ़ हए। शीघ्र सहस्राम्ब वनमें जाकर शिलापर बैठे हुए उत्तर दिशामें मुख किये हुए पपासनमें स्थित वीर्षनेत्रवाले वह, ज्येष्ठ माहके कृष्णपक्षको चतुर्दशोके दिन भरणी नक्षत्रमें अपराह्म के समय छठे उपवासके साथ दीक्षा ग्रहण करते हुए गुणवान् देवको मनःपर्ययशान उत्पन्न हो गया। बतामो संयम भावसे क्या नहीं उत्पन्न होता? उन्होंने जिस केशभारको उखाड़ा था उसे इन्ने फूलोंसे अचित किया और क्षोरसमुद्र में फेंक दिया । पक्रायुध प्रमुख एक हजार राजामोंने तत्काल संयम पहण कर लिया। दूसरे दिन ५. १. A सि पहरणु सालहि P बसि पम्मु वि सालहि । २. P गेहपर रि। R. AP संगमहरि । ४. A छपसंदु। ५. AP पयासिर ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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