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-६३. ३. १२ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
रणरासि सत्र्त्तचि चि जोइड
गय सुंदरि सुविधा
तेत्त
मु धोविदपणु अवलोइड | थि अत्थाणि राहिङ नेतहि ।
घसा - सित्रिणंत णिहिदु गिरंतरु कंत कंत ईरिटं ॥ अबही तेण महीसें तं फलु ताहि वियारिडं ॥ २ ॥
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होस सिरिअरहंतु भडारउ । जा छम्मास ताम बसु बुट्ठरं । आगय घरु जिणगुणरंजियमइ । भरणिरिक्खि णिसिपर पहतरि । for Toभावया परमेस । पुणपण कंपावियदे | पुज्जिय सगल असेल विसपियर । एं कि पपगणु पिंजरु । ऊणि तिसायरि गलियजमंसे । चित्तौजुत्तमासपक्वंतरि | जाम जोड़ सुहंकरि आयइ । जिगु रेहड़ णाणत्तयछाय |
तु उयरि तेलोकपियारउ रागणिलोपहिं विदिट्ठ हिरि सिरि बुद्धि कंति कित्ती सह भदवय भयसंखावासरि जणणिहि मुहि पट्ट गयबे से मेहरण तेण अहमिदे आय देव सयल वि पंजलियर मास विहित्तु चामीयरु पल्लवत्थ भारत से धम्ममहामुणिदेव जिणंसरि काइ दिदिम जायर पछिम संझहि जणियउ मायइ
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भवन, रत्नराशि और अग्निज्वाला भी देखी। मुंह धोकर उसने दर्पण देखा । सवेरे वह सुन्दरी वहाँ गयी जहाँ राजा सिंहासनपर विराजमान था ।
पत्ता - समस्त लगातार स्वप्नान्तर कान्ताने अपने पति से कहा । अवधीश्वर ( अवधिज्ञान के घारी) महीश्वर ने उसे उसका फल विवेचित कर दिया || २ ||
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तुम्हारे उदरसे त्रिलोकके प्यारे आदरणीय श्री अरहन्त उत्पन्न होंगे। लोगोंने भी देखा कि राजा के अगऩमें छह माह तक रश्नोंकी वर्षा हुई। हो- श्री-बुद्धि-कीर्ति आदि सतियाँ जिनगुणोंसे रंजितमति होकर आयो । भाद्र वदी सप्तमीके दिन भरणी नक्षत्र में रात्रिके अन्तिम प्रहरमें वह माता के उवरमें गजरूपमें प्रविष्ट हुए और इस प्रकार परमेश्वर उस अहमेन्द्र मेधरथने गर्भावतार किया। सभी देव अंजली बाँधे हुए आये और पिता सहित उन्होंने सभी स्वजनों की पूजा की। कुबेरने नव माह तक स्वर्णकी वर्षों की ओर उसने राजाके आँगनको पोला कर दिया। धर्मनाथ महामुनि तीर्थंकरके बाद चौथे पत्यके तोन भाग कम तीन सागर समय बीतनेपर, एक भाग (पाव) पल्प का उच्छेद होनेपर, ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थीके दिन शुभंकर शुभयोग में रात्रि के अन्तिम प्रहर में मालाने जिनको जन्म दिया। वे तीन ज्ञानोंकी छायासे शोभित थे ।
६. A सत्तविषय |
३. १. A उत्थाय । २. A ऊर्जातिसार । ३. A जिट्टा" but gloss चैत्रः; T चित्तमुत्तमास चैत्रः ।