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महापुराण
[१३.१.११. अजियसेणु तहिं पहु पियवाइणि तह पियदसण णामें पणइणि । बंभकप्पचुन वइरिविमहणु बीससेणु उप्पण्णव णंदणु । सुणि गंधारदेसि गंधार
पुरि पंडुरधरि पुहईसार। तहिं णरणाहु णाम जियजउ अजियदेविवालहु परदुजः । घत्ता-तेराएं सुहिअणुराएं णिरु भल्लार मावि |
अइरा सुय णषफिसलयमय वीससेणु परिणाषिउ ॥१॥
एयह होसह धुवु तित्थंकर घणय धणय लइ तेरउ अवसरु तं णिसुणिवि ते कमलदलखे हरियङ मरगयसोरणमालहिं कोमलगत्तमलियणेत्ता णिकाएंतिइ पुण्णपवित्तिह परादेवि दिल कुंजर सिरिवामाहं दोणि विलुलतइं
कुंभजुप शससुया कोसिस १. सीहासणु विमाणु अमराणां
सोलइमउ कंदप्पखयफ। करि पुरु मणियरहय दिवसेसरु । कंधणपट्टणु णिम्मिउ जक्खें। जलद व पउमरायकरजालहि । सउयला पेल्लंकपसुत्ता। पमिछमरसिइ गुणगणजुत्तिइ । पसुबह केसरि खरणहपंजरु । ससिरविबिंबई णहि जयंतई। सरबह जलहि जलावलिचालिरु । भवणु फणिदहु तण पहाण ।
त्रिजगकी उन्नतिका अपहरण कर रहा है। अजितसेन नामक वहांका राजा था उसकी प्रिय बोलनेवाली प्रियदर्शना नामकी प्रणयिनी पी ! शत्रुओंका मर्दन करनेवाला ब्रह्मस्वर्गखे च्युत होकर उनका विश्वसेन नामका पुत्र हुमा। सुनो-गान्धार देश में पृथ्वोमें श्रेष्ठ धवल घरोंवाली गन्धारी नगरीमें अजितजय नामका राजा था, जो अजिता देवीका प्रिय और शत्रुओंके लिए अजेय था।
पत्ता-सुधियोंके प्रति अनुराग रखनेवाले उस राजाने अच्छा विचार किया कि जो उसके नवकिसलयके समान भुजाओंवाली अपनी अचिरा नामको कन्याका विवाह विश्वसेनसे कर दिया ॥२॥
इन दोनोंसे निश्चयपूर्वक कामदेवका नाश करनेवाले सोलहवें तीर्थ फरका जन्म होगा। कुबेर-कुबेर ! लो, यह तेरा अवसर है । तुम मणिकिरणोंसे दिनेश्वरको पराजित करनेवाले पुरको रचना करो। यह सुनकर कमल दलके समान आँखोंवाले उस यक्षने स्वर्णनगरको रचना की। मरकत मणियोंकी तोरणमालाओंसे वह हरा-हरा था। पद्मराग मणियों के किरणजालसे जलता हया था। सौषतलमें पलंगपर सोते हुए कोमल शरीरवालो, मुकुलित नेत्र, पुण्यसे पवित्र तथा गुणगणोंसे युक्त एरा देवी थी। रात्रिके अन्तिम प्रहरमें उसने हाथी देखा । वृषभ, तीव नखसमूहसे युक सिंह, लक्ष्मी, दो मालाएं झूलती हुई, आकाशमें उगते हुए सूर्यचन्द्र के बिम्ब, घटयुगल, खेलते हए दो मत्स्य, सरोवर, जलकी लहरोंसे चंचल समुद्र, सिंहासन, देवोंका विमान, नागेन्द्रका प्रमुख २. १. A तोरणवारहिं । २. P पल्लकि पसुत्तइ । ३. AP भइरादेविह। ४. A उत्रयंतई । ५.
अमराराज।