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________________ ४२. महापुराण [१२.२.६ जगणाडिपलोयणणाणधर ते णिम्पडियार पसण्णमा रिझवि धम्मसंभासणई केवलि अप्पण्णइ जिणवरई सहुं भायरेण अहमिद सुरु धत्ता-गोत्तमेण ज अक्खिल जं सुह सोत्तहिं माणइ तेत्तियवीरियषिकिरियकर। कत्थई णउ ताई वियोररह। कम्याई मुयंति सीहासणई। भुवि जाइजराजम्मणहरह। जाणंतु तनु पर्णमंतु गुरु । जंभरहेसे लक्खि ।। पुष्फयंतु तं जाणइ ।।२३॥ इय महापुराणे विसटिमहापुरिसगुणाकारे महाकापुफ्फर्यतविरहार महामध्यमरहणुमणिए महाकाले मेहराहसिस्थयरगोतणिवर्ण णाम सहिमो परिच्छे प्रो समतो nen nama m arinirnationna movemen चिन्तित सूक्ष्म-सूक्ष्म अणुका बाहार करते। विश्वनाडोको देखनेवाले प्रानके धारक थे। उतनी ही विकियाऋद्धिको कर सकते थे। प्रतिकारको भावनासे रहित और प्रसन्नमति थे। उनमें विकाररति कहीं भी नहीं थी। वे धर्मसम्भाषणोंसे प्रसन्न होते थे। जन्म, जरा और मरणका हरण करनेवाले मिनवरोंको केवलज्ञान उत्पन्न होनेपर वे कभी-कभी अपना सिंहासन छोड़ते थे । वह अहमेन्द्रसुर अपने भाईके साथ तत्वको जानता और गुरुको प्रणाम करता। घत्ता-गौतमने जो कुछ कहा, वह भरतेश श्रेणिकने जान लिया। अपने कानोंसे जो उस सुखको मानता है, हे पुष्पदन्त वही उसे जानता है ॥२३॥ इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषों के गुणाकारोंसे पुक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामन्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में मेघस्थ तीर्थकर गोत्र मिबन्धन मामका बासठया परिच्छेद समाप्त हुषा ३॥ ६. AP विहारर । - A कत्थह ण मुयति । ८. A पणवंतगुरु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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